तुम ना समझोगे मेरी जानिब-ए-मंज़िल,
ठोकरें हैं, निराशा है, ख़ामोशी है,
नम हैं आँखें थोड़ी, थोड़ी बेहोशी है।
मौहताज हो तुम महलों के,
यहाँ रुकावटें ना जाने कैसी हैं,
ना हमसफ़र है साथ कोई,
ना हाल पूछने को हितैषी हैं।
तुम्हारी चाकरी में सुकूँ है,
जैसे छाई आँखों पर मदहोशी है,
मगर हासिल करना है मुझे कुछ,
कल ख़ुदा के दर पर पेशी है।
जहां भी अब पीछे छूट गया,
ना झूठ, ना फ़रेब, ना नकाब-पोशी है,
अकेला ही हूँ अब इस सफ़र पर,
ना तन्हाई का ग़म है, ना ख़ुशी है।
तुम ना समझोगे मेरी जानिब-ए-मंज़िल,
ना रक़ीब हैं, ना इश्क़ है, ना आग़ोशी है,
मुक़ाबला है अब खुद से ही,
नम हैं आँखें थोड़ी, थोड़ी बेहोशी है।-
मेरी जानिब-ए-मंज़िल,
ठोकरें हैं, निराशा है, ख़ामोशी है,
नम हैं आँखें थोड़ी, थोड़ी बेहोशी है,
मौहताज हो तुम महलों के,
यहाँ रुकावटें ना जाने कैसी-कैसी हैं,
ना हाल पूछने को हितैषी हैं।
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तेरी तिश्नगी में कविताएँ लिखीं तब तक,
तुझसे वफ़ा की उम्मीद थी जब तक।
तेरी ज़ुल्फ़ों का जादू कुछ यूँ था,
आँखें मेरी बड़ी मशग़ूल थी अब तक।
तुझसे मिलने को इतना इच्छुक था मैं,
अनंत अर्ज़ियाँ मैंने पहुँचाई थी रब तक।
बड़ी बेचैनी थी मेरे इस दिल में,
चिंता में मैंने बिताई थी शब तक।
बेवफ़ाई तो आख़िर हो ही गई तुझसे,
मगर वफ़ा तूने निभाई थी कब तक?-
तू स्वावलम्बी है, स्वाभिमानी है,
तुझे तो अभी खूब इज़्ज़त कमानी है,
मगर 'डर' से तूने हार मानी है,
रगों में तेरे खून नहीं, पानी है।
तुझे खुद पर विश्वास नहीं,
जोशीला तेरा आगाज़ नहीं,
ये कैसी तेरी जवानी है?
रगों में तेरे खून नहीं, पानी है।
न तुझे फ़िक्र है, न बेचैनी है,
तुझे तो ख़यालों में शाम बितानी है,
मुख़्तसर सी ज़िन्दगी
शायद तुझे यूँ ही गँवानी है,
रगों में तेरे खून नहीं, पानी है।
दिल में आज फिर वही आग लगानी है,
कर बुलंद हौसले इतने कि
अपने कर्मों से तुझे दुनिया चौंकानी है,
अगर कमज़ोर समझता है तू खुद को
तो, रगों में तेरे खून नहीं, पानी है।-
कुछ कहते हैं "इश्क़" जुआ है,
यहाँ किसी ने कुछ
तो किसी ने सब कुछ हारा हुआ है।
कुछ कहते हैं यह खुदा की बरक़त है, दुआ है,
खुशकिस्मत हो कि तुम्हें यह मर्ज़ हुआ है।
कोई इससे दूर भागना चाहता है,
तो कोई अपनी इच्छा से यहाँ कैद हुआ है।
कोई आदि है इन उमड़ती भावनाओं का,
तो कोई हाल ही में इनसे वाकिफ़ हुआ है।
कुछ के तो मष्तिष्क अब मंद हो चुके हैं,
तो कोई यहाँ बड़ा विद्वान् बना हुआ है।
कुछ ने तो साथी मिलने की उम्मीद ही छोड़ दी है,
तो कोई अब भी बड़ी उम्मीद लिए खड़ा हुआ है।
कुछ बड़े बिंदास हैं इज़हार-ए-इश्क़ करने में,
तो कोई अब भी उसे बताने से डरा हुआ है।
कोई बड़ा खुश है यहाँ दिल हारकर,
तो कोई बेवफ़ाई के ग़म में डूबा हुआ है।
कुछ तो यहाँ होकर भी आज़ाद पंछी हैं,
तो कोई जोरू का गुलाम हुआ है।
इश्क़ में कोई सफल, कोई असफल हुआ है,
कुछ की इज़्ज़त अब भी नीलाम नहीं हुई,
वहीं कोई उसे अब भी खोजने में खोया हुआ है।-
इक ख़्वाहिश है सरहद पार जाने की,
ख़्वाहिश उस पार का संसार देख आने की,
इन नफ़रतों की मझदार से आगे बढ़ जाने की,
उन खुशियों की मल्हार को सुन पाने की,
इक ख़्वाहिश है सरहद पार जाने की।
कुछ उलझे सवालों को सुलझाने की,
इक रात अनजान शहर में बिताने की,
देखूँ तो वर्तमान अवस्था उस बीते ज़माने की,
उस ज़मीन पर इंसानियत का परचम लहराने की,
इक ख़्वाहिश है सरहद पार जाने की।
इक कोशिश अमन का अर्थ समझ पाने की,
भारत माँ की गौरवशील गाथाएँ बतलाने की,
शांतिदूत बनकर भाईचारा फैलाने की,
बच्चा हूँ, ख़्वाहिशें हैं हज़ार दिल में बसाने की,
इक ख़्वाहिश है सरहद पार जाने की।-
झूठ का लिबास ओढ़कर
दोनों हाथ साथ जोड़कर
चला जा रहा है तू
बता तेरी रज़ा क्या है?
गरीबों की रीढ़ तोड़कर
विकास की सीढ़ी मोड़कर
चला जा रहा है तू
बता इसमें मज़ा क्या है?
अपनी भ्रष्ट सोच सिकोड़कर
अपना ज़मीर पीछे छोड़कर
चला जा रहा है तू
बता तुझे आरिज़ा क्या है?
न्याय की आँखें फोड़कर
युवा की ऊर्जा निचोड़कर
चला जा रहा है तू
बता तेरी ग़िज़ा क्या है?
एकता की सिलाई खोलकर
मज़हबों का वज़न तोलकर
चला जा रहा है तू
बता तेरी सज़ा क्या है?
बता तेरी रज़ा क्या है?-
आसक्ति और इश्क़ में ज़रा-सा फ़र्क है
कहीं आनंद, कहीं दर्द है
कोई दवा, कोई मर्ज़ है
कहीं सब अर्थहीन, कहीं सबमें अर्थ है
कहीं शर्तों से मुक्ति, कहीं अस्तित्व पर भी शर्त है
कहीं तसल्ली, कहीं जज़्बातों का खर्च है
दिल में बड़ी अराजकता है, संघर्ष है
जो बयां कर सके वो शायर है
जो न कर पाए, वो कायर है।-
जीत में तो सब साथ होते हैं
पर, मेरी हार में भी शामिल है तू।
योग्य कहूँ, या कहूँ काबिल तो सब होते हैं
पर, इंसान-ए-कामिल है तू।
खुशियों में तो सब पास होते हैं
पर, मेरी अश्कों की बेला में हाज़िर है तू।
अपना उल्लू सीधा करते झूठे दोस्त बहुत होते हैं
पर, मेरी भटकती राहों को संभालता मुसाफ़िर है तू।
गलत नसीहत देने वाले बहुत होते हैं
पर, सही परामर्श देने वाला क़ासिद है तू।
अर्थहीन ख़्वाब दिखाने वाले चतुर बहुत होते हैं
पर, ख़ुदा से मांगी गई सबसे क़ीमती मक़ासिद है तू।
ऐ दोस्त, सच्चाई का फ़रेब करने वाले बहुत होते हैं
पर, मुझे मिला परोपकारी, बेदाग़, जाहिल है तू।
मेरी पहचान लुप्त करने के प्रयास बहुत होते हैं
पर, मेरी उफ़नती लहरों को शांत करता साहिल है तू।
मुसीबत में तो छोड़ कर जाने वाले बहुत होते हैं
पर, उस घड़ी में भी अडिग खड़ा पासबान है तू।
धोखा दे ज़िन्दगी की ज़मीन छीन लेने वाले बहुत होते हैं
पर, हर वक़्त ढाढ़स बँधाता आसमान है तू।-