BRIJENDRA SINGH(BSR)   (कविबृजेन्द्र'गोरखपुरवाला)
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Your speed does not matter,
Forward is forward....🤘
Joined 20 October 2019


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28 JAN AT 11:30

जिंदगी के अजीब फलसफ़े,
उन्हे गैर या अपना कहे,
सब कुछ ऐसा धुंधला दिखे,
न हम कुछ कह सके,
न वो कुछ सुन सके,
मीठी बातो की छुरी,
बस दिल पर चले,
होस मे बेहोश हम,
उनसे मुक़्क़मल रहे,
अजीब दास्तां का,
क्या ही जिक्र करें,
फैसले की इस इम्तेहां,
मे बस साथ उनका रहे,
जिंदगी के इस ड़गर पर,
बस नूर उनका रहे।।



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12 JUL 2022 AT 8:50

एक अजनबी से मुलाकात,
एक मुस्कान में सौ बात,
बात ऐसी न वो कहे न हम,
बस विचलित से बैठ रहे हम।
ख़ासियत खूबसूरती की,
सादगी की मासूमियत की,
पर बात ऐसी थी न वो कहे न हम।
चल रहे थे साथ मे,
थीं दिशाएं दो,
पर रात ऐसी थी न वो कहे न हम।
वर्णन होता रहा,
उनके मेरे जज्बात का,
कुछ किस्से कहानी,
तो कुछ अपनी ज़ुबानी,
बस बात ऐसी थी न वो कहे न हम।।

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18 JUN 2022 AT 19:11

ये ढलता सूरज,
नदी का किनारा,
चंचल पवन संग,
मन विह्वल हमारा।
टिटिहरी का गाना,
पक्षियों का दोहराना,
नदी के लहरों संग,
मन विह्वल हमारा।
हवाओ का पेडों संग,
यूँ लड़ना-झगड़ना,
आसमान के किरणों का,
जल में उतरना देख,
मन विह्वल हमारा।।

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20 MAY 2022 AT 17:51

#ठाकुर_का_दुर्भाग्य'

कभी क़ासिम तो कभी गजनी से
भिड़ा ठाकुर!
हार तो तय थी...
पर लड़ा ठाकुर!

हारना ही था उसे,
वो अकेला लड़ा था,
क्या जन्मभूमि ये तुम्हारी नहीं थी?
फिर क्यों अकेला लड़ा ठाकुर?

बीवी सती हुई,
बच्चे अनाथ!!
हिन्दू तो बचा पर,
भरी जवानी में ही
मरा ठाकुर!

सदियों से रक्त दे
माटी को सींचा,
जन, जन्मभूमि
और धर्म की वेदी पर
मिटा ठाकुर!

मौत होती तो
लड़ भी लेता,
पर...अपनों की घृणा से
सहमा-डरा ठाकुर!

जिनके लिए सब कुछ खोया,
क्यों उनकी ही नज़रों में बुरा?
फ़िल्मों का ठाकुर!
कहानियों-क़िस्सों का ठाकुर!
कविताओं का ठाकुर!

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20 FEB 2022 AT 11:05

एक कलम अपनी होगी,
हर ज़ुल्म से लड़ने की,
कल होगी,पर होगी,
एक कलम अपनी होगी।
नीति का सारांश, अनीति के विरुद्ध
एक कलम ऐसी होगी,
जो लिख देगी एक नई क्रांति,
दे देगी समाज को,
एक पन्ने पर उतार,
एक कलम बृज की होगी।
जो कर देगी मेरा उद्धार,
हो सकेगा समाज का,
एक नया अविष्कार।।

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9 SEP 2021 AT 11:36

मन बढ़ना चाहता है,
ये उड़ना चाहता है,
सूरज के किरणों संग,
सन्ध्या के ह्रदय उमंग में,
ये मिलना चाहता है,
मन उड़ना चाहता है।
साधु के मन का रंग,
ये पढ़ना चाहता है,
मन उड़ना चाहता है,
बृज बालाओं के संग,
अटखेलियां करना चाहता है,
मन उड़ना चाहता है,
घोरांग की मिट्टी के सुगंध,
संग ये मिलना चाहता है,
मन उड़ना चाहता है।।

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2 SEP 2021 AT 10:13

आदर्शों के पथ पर,
कंटक बहु छाए,
दूर दूर तक,पात पात पर
सुख न नज़र आये,
फिर भी इस जीवन,
संजीवनी के लिए,
आदर्शों के पथ पर,
हम लहू बहाये।
अंत भला तो सब भला,
यही हम दोहराएं,
आदर्शों के पथ पर,
हम सरल जीवन बिताएं।।

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1 SEP 2021 AT 11:57

ये नाक नक्श,
इश्क़ का अक्ष,
ये कर्ण द्वार,
होंठो का ज्वाल-
जैसे लाल रंग,
सब हुए दंग,
देख साधु का ढंग,
कर विस्मृत,
अमृत का भंडार,
ये इश्क़ का द्वार,
बड़ा अंधकार।।

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31 AUG 2021 AT 8:12

जिंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं,
और क्या जुर्म है पता ही नहीं,
इतने हिस्सों में बंट गया हूँ मैं,
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नही।
ऐ जिंदगी मौत तेरी मंजिल है,
दूसरा कोई रास्ता ही नही,
सच घटे या बढ़े, तो सच न रहे,
झूठ की कोई इंतहा ही नही।।

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19 AUG 2021 AT 9:26

गांव के बागों में,
पीपल के छाँव में,
मिट्टी की सोंधी खुश्बू में,
मेरा दिल बस्ता है।
भाईयों के प्यार में,
यारों की यारी में,
बड़ो के आशीर्वाद में,
मेरा दिल बस्ता है।
बारिश के पानी में,
खेतों की छपछप में,
गलियों के तिराहों में,
मेरा दिल बस्ता है।।

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