Brajendra Mishra   (ब्रजेन्द्रमिश्र 'ज्ञासु')
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Joined 9 May 2020


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4 MAR 2023 AT 18:35

मंजिल कुछ ही दूर है, चलते रह तू यार।
जोर लगा पतवार पे, होगा दरिया पार।।

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26 FEB 2023 AT 15:27

बीच भँवर में छोड़ दिया है,
भूल गए क्या मोहन मुझको।
किस दिश को प्रस्थान करूँ,
भ्रम में पड़ा पुकारूँ तुझको।

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25 FEB 2023 AT 0:00

हर घड़ी जिंदगी ये, सवाल हो गई।
राहुल के भाषणों सी, बवाल हो गई।
आडवाणी कभी तो ये, मोदी हुई कभी।
बंटाधार हो गया जो, केजरीवाल हो गई।

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24 FEB 2023 AT 23:57

ऊँची इमारत तो वे, बिन आधार हो गए।
और गीता बिन पढ़े ही, गीतासार हो गए।
कुछ कलम के सिपाही, जीते गुमनामी में।
कृतियाँ चुरा के कुछ, साहित्यकार हो गए।

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3 FEB 2023 AT 21:29

भाषाएँ सब सीखिए, मगर सीखिए शुद्ध।
खिचड़ी से मत कीजिये, अपनी भाषा क्षुब्ध।।

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3 FEB 2023 AT 21:04

#समसामायिक_दोहे #रामचरितमानस


ब्रजेन्द्र मिश्रा 'ज्ञासु'
शब्द-अभियंता अखिल भारतीय कलमकार मंच
मोब. 7349284609

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17 JAN 2023 AT 19:25

रुकी-रुकी सी लेखनी, थमे-थमे से भाव हैं।
विकल बड़ा है ये हृदय, हरे-हरे से घाव हैं।

क्यों शब्द सूझते नहीं, कलम से जूझते नहीं?
कागज पड़ा उदास है, ये कैसा ठहराव है?

लिख तू लुँगा लिखने को, अजी कवि सा दिखने को।
पर क्या ज्वार भाटे का, अजी आज उतराव है?

मेरे ही साहित्य की, कविता के लालित्य की।
याकि सकल संसार के, युँ डगमगाती नाव है।

कुछ भी लिखते जा रहे, छप भी रहा किताब में।
लेखन अशुद्ध लय हीन, नित ही पाता वॉव है।

देख मंच पे दुर्दशा, है खुद से कविता ख़फ़ा।
मंचों से साहित्य का, क्या टूट रहा चाव है?

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17 JAN 2023 AT 9:58

मंगलमाया छन्द (11, 11 यति) (गाल यति लगा, अंत गा)

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4 JAN 2023 AT 12:56

रुक रुककर चलती रेल रे बड्डे
मजे ले ले या फिर झेल से बड्डे

लोगों को गिराकर बढ़े वे आगे
तू उनको बढ़कर ठेल रे बड्डे

ईमान बेच के पा ले मंजिल
दर दर लगी है सेल रे बड्डे

मानो तो है अनुशासन शक्ति
जो न मानो तो जेल रे बड्डे

तुम पूरब और वो है पश्चिम
तो कैसे होगा मेल रे बड्डे

जितना भागोगे उतना तड़पोगे
जीवन ऐसा खेल रे बड्डे

ज्ञासु बिन कुचके कुछ न समझे
है ये तो बहुतै बैल रे बड्डे

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15 DEC 2022 AT 9:13

2212 2212, 2212 2212
जो है परीक्षा तो उठो, अभ्यास को सम्मान दो।
अपना हुनर पहचान लो, और रास्तों को मान दो।
ये तो जरूरी है नहीं, संधान हो नित लक्ष्य का।
श्रीकृष्ण की गीता सुनो, बस साधना पे ध्यान दो।

बाधा जलेगीं जिस समय, नित साधना के ताप से।
बाजे हुनर मिरदंग जब, अभ्यास की नित थाप से।
तब चीरकर अँधकार को, होगा उदय सौभाग्य का।
ये मंजिलें उस दिन स्वयं, आकर मिलेंगी आपसे।

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