वो चाहती है मुझसे रिश्ता भी ना रहे,
पर बात उससे ही हो ।
उसकी चाहत भी अजीब है ना,
मानो जैसे सूरज भी ना डूबे और चांदनी रात भी हो।।-
Likes travelling and fond of hurdles.
कल्पना को देना आकार है, लेखनी से प्या... read more
घर घर बना है उपवन,हर्षित है सबका मन,
लौट आए हैं राजा राम रह चौदह वर्ष तक वन।
प्रफुल्लित है अयोध्या नगरी, अलग सा है उमंग,
लौट आए हैं राजा राम मैया सीता के संग।
दीप, गुलाल, फूल से सब घर अपना सजा रहे,
लंका विजय की कथा अयोध्यावासी गा रहे।
मां लक्ष्मी का आशीर्वाद हम सब पर बना रहे,
रामराज्य की उत्कृष्टता पूरे संसार में बसा रहे।
आप सभी को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं !!-
इतिहास लिखता विज्ञान देख,
चाँद पर प्रज्ञान देख।
वैज्ञानिकों का ये ज्ञान देख,
चाँद पर हिंदुस्तान देख।
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जिन्होंने समझा हो अपनापन, हमेशा वही लाचार होता है,
झूठी तसल्ली देती है दुनिया, जब उनका वादों से शिकार होता है।
क्या रिश्ते , नाते, वफ़ा की बातें करें वो,जिनका फितरत ही गद्दार होता है,
अक्सर गुनहगार साबित होती है खुद्दारी उसकी, जिनका वसूल वफादार होता है।
वक्त रहते दुनिया की असलियत समझ लेना ए इंसान,
यहां पूजे जातें हैं गद्दार, ईमानदारी हमेशा नफरत का शिकार होता है।
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पता नहीं ये कैसी माया है तेरी सरकार,
भूल जाता हूं तकलीफें सारी पहुंच तेरे दरबार।
तेरे दर पे आता हूं बाबा लेके मन्नते हज़ार,
पर तेरी रहमत के आगे, क्यूं मांगना भूल जाता हूं हर बार।
समझ सका ना तेरी माया ऐ मेरे सरकार,
तू लेता है परीक्षा मेरी या है ये तेरा प्यार।
तेरे दर पर आते ही, हर मुराद पूरी हो जाती है,
बाधाएं चाहे कैसी भी हो ,मार्ग छोड़ हट जाती है।
पता नहीं ये कैसी माया है तेरी सरकार...
"ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात "
हर हर महादेव🙏🙏
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चल आते हुए बरस का हंस के स्वागत करते हैं,
खुशियों के धागों को मिला रिश्ते नए बुनते हैं।
पुराने लम्हों को भूल अगली शुरुआत करते हैं,
हौसलों में नई जान दे फिर नई उड़ान भरते हैं,,
चल आते हुए बरस का हंस के शुरुआत करते हैं।।-
कभी हम साथ होते थे,आज मिलन की बेकरारी है,
प्रकृति ने खेला खेल ऐसा,दूरियां अब लाचारी है।
महबूब मिलन को तरसे,परदेसी को गांव बुलाएं,
सुहागन घर पर राह तके,पीया सलामत मिलन को आए।
कभी सब साथ होते थे...-
अगर मां ने लहू से सींचा है तो पिता ने लहू जलाया है,
घर की सुन्दर फुलवाड़ी को दोनों ने मिलकर सजाया है।
बच्चों के लिए पिता जाने कितनी तकलीफे उठाते हैं,
खुद सोते है गीले पर उन्हें पेट पे लिटाते हैं।
बचपन के दिनों में जो घोड़ा बन घुमाते हैं,
जीवन का हर चाल जो उंगली पकड़ सिखाते हैं।
चाहे तकलीफें कितनी भी हो, जो उफ्फ तक ना करते हैं,
घर की ख्वाइश पूरी करने जो ढेर मुसीबत से लड़ते हैं।
धरती सी धीरज है जिनमें आसमान सी ऊंचाई है,
खुदा ने बहुत तरास के पिता रूपी "प्रतिमा "बनाई है।-
क्या था बिहार...
क्या था बिहार, क्या हो गया !
क्या गरिमा अपनी वो खो रहा?
जाना गया था विश्व में जो उदित हो प्रथम गणतंत्र,
प्रतापी राजा थे अशोक जहां, पूजता था जिन्हें भूखंड।
राजेंद्र की धरती रही जो, जिसे नालन्दा विश्वविद्यालय का सम्मान था,
बुद्ध को यहीं है ज्ञान मिला, इसका सबको अभिमान था।
नारी रत्न में आम्रपाली, जिन्हें विश्वभर ने जाना था,
बुढ़ापे के वीर कुंवर यहीं, जिनका लोहा सबने माना था।
आपातकाल के दौर में जहां उपजा था एक विश्वास,
वो कोई और नहीं छात्र यहीं के ,नाम था जयप्रकाश।
क्या था बिहार क्या हो गया..
जहां आते थे विदेशी शोध विषयों पर चर्चा को,
वहां के बच्चें अब भटक रहे, ले दाखिला के पर्चे को।
जिस धरती ने दिया विश्व को आयुर्वेद का ज्ञान,
मर रहे हैं वहां बच्चें तड़प कर, मर्ज की वर्षों से न हुई पहचान।
सबको सिखाया साथ रहें कैसे, नाम पड़ा "बिहार",
आज लड़ रहे जाति बंधन में, धूमिल हो गया वो "प्यार"।
क्या था बिहार क्या हो गया!
क्या था बिहार क्या हो गया...!
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बीत गया जो साल पुराना , वो सबक ढ़ेर हमें दे गया,
इंसान के बस सबकुछ नहीं प्रमाण हमें ये दे गया।
फिर आते हुए बरस का चल हंस के स्वागत करते हैं,
खुशियों के धागों को जोड़ रिश्ता नया एक बुनते हैं।
पुरानी बातों को भुला अगली शुरुआत करते हैं,
हौसलों को देकर नया पंख फिर से उड़ान भरते हैं।
चल आते हुए बरस का हंस के स्वागत करते हैं...
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