स्नान
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मनुष्य से
जल का नाता
जीने की शर्त की तरह है
उसी के लिए हैं
इतने समुद्र
नदियां बह रही हैं
वाष्पन चल रहा है
दो अणु हाइड्रोजन के
आक्सीजन के एक अणु से मिलकर
लगातार जल बना रहे हैं
पर्वतों को स्नान कराने के लिए
आती है बरसात
ऋण चुकाने के लिए वह
एक सोते से नद नदी निकाल देता है
नदियां तलाशती हैं अपने अवरोह
और जा रही होतीं हैं
जलधि को और ज्यादा भरने के लिए
कुछ नदियां चुक जाती हैं
कुछ रेत बन चुकी हैं
कुछ ही नदियां शेष हैं
जो स्नान के लिए
करोड़ों मनुष्यों के लिए
आमंत्रित कर सकतीं हैं
उत्सव बना सकतीं हैं
स्नान को भी
पर्वत अपने सोतों को
अद्यतन करते हैं
जल खुद मुख्य धारा में आ जाता है
मुझ सहित सभी
कहीं भी स्नान करते हुए
एक बार फिर
मन ही मन
कृतज्ञ हो जाते हैं
जल के प्रति
जिसकी हर बूंद
कभी नहीं इंकार करती
हमारी प्यास को बुझाने के लिए
और बदन की गर्मी को
कम करने के लिए.
ऐसे में अगर हम उन जगहों के बारे में
सोचें जहां
प्यासे से रहते हैं लोग
तो सारी खुशी सहम जाती है एकदम
ब्रज श्रीवास्तव
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काल के अगले कदम का ये है संधि काल
ये न तुम्हारा है और न हमारा नया साल.
वक्त की तो होती अपनी अलग एक चाल।
हम ही करेंगे कुछ तो होगा भाग्य में कमाल।
कैलेंडर बदला है अभी तो हुआ नया साल.
कितने आंसू और स्मितें दे गया गया साल.
न महामारी रहे,न रहे अमानवीय कुछ धमाल.
है ये कामना मेरी कि चले वक्त सधी चाल.
हम मित्रों के स्नेह की जुड़ी रहे नाभि नाल.
स्वास्थ्य दे नेमतें,हों खुशियां फिर बहाल.
हरियाली लाने वाले कभी नहीं हों बेहाल
लग जाये ये दुआ कि हर शख्स हो खुशहाल
उसको भी शुक्रिया बहुत कि जो अब गया साल
आप सबको, आप सबको,मुबारक हो नया साल.
ब्रज श्रीवास्तव
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न गुस्सा हैं न रूठे हैं।
बस ज़रा से टूटे हैं।
हथेली के बड़े सहारे
अंगुली और अंगूठे हैं
मेहनत ने दिये रूपैये
बाज़ारों ने लूटे हैं
अहं भरे रिश्तों के बर्तन
टकराकर ही फूटे हैं ।
हम भी धोके खाए हैं
दोस्त कई छूटे हैँ
ब्रज श्रीवास्तव
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समय ही ऐसा है:फोन
फ़ोन करके
लेते हैं आपमें दिलचस्पी
करते हैं प्रशंसा
बुलाते हैं अपने घर
चले आते हैं आपके घर
खूब घुलते मिलते हैं
लड़कियों के लिए ऐसा व्यवहार
लड़के ही नहीं
प्रौढ़ भी करते हैं कभी कभी
प्रौढ़ों से
किसी दिन ऊब जाते हैं
तो बंद कर देते हैं
संवाद का दरवाजा
इस तरह भी
खतम हो रहे हैं
घनिष्ठ रिश्ते.
समय ही ऐसा है।
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समय ही ऐसा है।
शब्दकोश से निकल कर
गर्व अनुभव हो जाता था
उपलब्धियों और
शौर्य पर
अंदर कहीं उमग आता था
क्षण भर को
छल छल आंसूओं से अनायास व्यक्त हो जाता था
व्यक्त होते ही छिपा लिया जाता था पहले
गायन नहीं होता था
समारोह नहीं होता था
ध्वज की ज़रूरत नहीं होती थी उसे
वह खुशी था,अट्टहास नहीं
तभी तक गर्व
के मायने थे
जो सही सही
समझाये जा सकते थे
अब टाई में,तिलक में
टोपी और
पोशाकों में लहराया जा रहा है
यह शब्द
लगभग दंभ को गर्व
समझा जा रहा है जो
समूहों में फैल गया
इकाई से निकल कर
समय ही ऐसा है.
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भाषा
एक भाषा चलकर मेरे पास आई है
जो पक्षियों की भंगिमाओं से बनी है
जिसे मधुमक्खियों के जत्थे ने
बिखेर दी है
पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में.
एक भाषा शब्द रहित होकर
चल रही है शहर की गलियों में
आँखों और कानों के रास्ते से
समझी जा रही है
बच्चों द्वारा और प्रेमियों द्वारा
कहीं कहीं कुछ निशक्त बुजुर्ग भी निकाल लेते हैं अर्थ .
भाषा आँसूओं में घुल रही है यातना गृहों में
मरते जा रहे सैनिकों और उजड़ती जा
रही बस्तियों में खुद बिलख रही है
उधर एक बंकर उच्चारता है
भयंकर आह्वान के शब्दों को।
हवा ने भी बदलाव कर लिया है
अपने वाद्यों का
जो पत्तों और गर्जना में घुले मिले हैं.
ध्वनियों से इस समय माध्यम मित्रता करने में
लगे हैं
इस समय भाषाओं के तेवर में
तल्खियां हैं
मेरे पास आई है जो भाषा
वह निर्वात से गुजर रही है
कहीं पहुंच नहीं रही है।
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इतना करना
अगर तुम्हारे हाथ में
कुछ है ऐ काल के टुकड़े
तो इतना करना
हमें संभाल कर रखना
हमारे दोस्तों को संभालना
हमारे रिश्तों को बचाने की
समझ देना
जीवन का जीवन सहेजे रहना
अपने बदन में
हमें उठाकर दे देना
नये साल के हाथों में
बस इतना कर देना
और यही कह देना
अगले साल से
ब्रज श्रीवास्तव.-
फोन नंबर.
नदी किनारे के
वृक्षों की तरह
अनेक संपर्क नंबर हैं
मेरे फोन में
जीवित हो जाते हैं ये
उस तरफ की आवाज़ें मेरे अंदर
घुल कर द्रवित करती रहतीं हैं
अंकों का तुरंत रिश्तों में
बदलने का जादू
बड़ा सा सहारा है
जाने कितने नंबर
जुड़ते जाएंगे
कम या बंद होते जाएंगे
इसी सूची में
कुछ नंबर ऐसे हैं
जिनको डायल करने से
अब कुछ नहीं होगा
उन नंबरों को भी मिटाने का मन नहीं होता
जिन आवाजों को बंद
कर दिया है कुदरत ने सदा के लिए
ब्रज श्रीवास्तव
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मेरा पुराना नाम
कुछ पुराने दोस्तों को
कुछ रिश्तेदारों को याद रह गया है
उन्हें तो अब तक नहीं पता
कि मेरा नाम बदल गया है
उन्हें बताना मुझे जरूरी भी नहीं लगता
कि किसने मेरा नाम कब बदला था
यह तो बस माँ को पता है
कि एक दिन मेरे दादाजी ने स्कूल जाकर
दरख्वास्त दे दी थी हेडमास्टर को
मेरा दूसरा नाम रखने के लिए
मौखिक रूप से कहा था
नाम रखने का अधिकार तो दादा का होता है
नाना का नहीं.
नामों को क्या पता कि वे
केवल शब्द हैं
लोग इनके सहारे भी अपने
अधिकारों को आजमाते हैं.
व्यक्तियों को क्या मालूम
कि उनका जो नाम है
उसे रखते समय
किसी ने गौरव
किसी ने जाति
किसी ने धर्म के बारे में सोचकर
एक गर्व को महसूस किया था
ब्रज श्रीवास्तव.-
दीपक.
एक ज़माना था
जब मिट्टी का हर तरफ़
बोलबाला था,
बच्चे उसे खाया करते थे खेलते समय
महिलाएं बाल धोया करतीं
इलाज के लिए भी मुफीद रही मिट्टी ही
कुम्हार को प्रजापति इसलिये कहा गया
कि वह मिट्टी के बर्तन
पूरे गांव को देता था
कबीर ने उसकी बातें अपनी साखी में करीं,
ब्याह की शुरुआत में ही होती थी
मिट्टी की पूजा
एक ज़माना था जब किसी के मिट्टी में मिल जाने की खबर सुनकर लोग रोने
लग जाते थे
नाटक में भी मिट्टी की गाड़ी की बड़ी भूमिका थी
देश का नाम राष्ट्र नहीं मिट्टी होता था
हम सब बाहर से घर में प्रवेश करते समय
तनाव नहीं, मिट्टी छुटाते थे
खेतों की मिट्टी को माँ की तरह पूजा जाता था,
सबसे बढ़िया खिलौने मिट्टी के हाथी घोड़े होते थे
मिट्टी के घरों में ही रहते थे महापुरुष
मिट्टी की गंध नहीं मिली थी मिट्टी में
एक ज़माना था जब सूरज और चंद्रमा के
अलावा रोशनी बांटने का जिम्मा
दीपक का था
जिसमें मौज़ूद मिट्टी
कार्तिक की अमावस को बहुत उमंग में रहती थी.
ब्रज श्रीवास्तव.
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