ब्राह्मण आशीष उपाध्याय   (✒️©Aशीष उPAध्याय✒️ "vद्रोही")
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Joined 20 October 2018


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Joined 20 October 2018

ए—ख़ुदा तू है, तेरे वजूद का मुझे भी एतबार हो जाए।
ग़र एक दफ़ा मेरे दुश्मनों को भी किसी से प्यार हो जाए।।

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इंतज़ार में उनके कई साल,कई दिन,कई जून,कई पहर गये।
तीज-त्यौहार हो गया फीका बच्चे जबसे कमाने शहर गये।।
कि घर को तो भर दिया है आधुनिक सुख सुविधाओं से पर।
बहुत जल्द आता हूँ,कह कर जाने कहाँ रुके,कहाँ ठहर गये?

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रास्तों पर पड़ गये हैं निशान मेरे पैरों के बार-बार आते—जाते।
घर बस नाम का ही है,बाकी ज़िंदगी बीत रही है बाहर कमाते कमाते।।

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वो क्या ही जानेगा अपने यार का दुःख।
ये आधुनिकता वाला सच्चे प्यार का दुःख।।
जिसको सब कुछ मिला हो,माँगने से पहले।
वो क्या ही जाने हमारे इंतज़ार का दुःख।।
ब्राह्मण आशीष उपाध्याय

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टूट गया है जो ऐनक ये ऐनक अब दिलाएगा कौन।
ख़त्म होने को हैं दवाएँ ये दवाएँ अब लाएगा कौन।।
हम भाइयों ने बाँट तो ली है उनकी सारी दौलत।
प्रश्न ये है कि बूढ़े माँ-बाप को अब खिलाएगा कौन।।
इस समस्या का भी हमने तिकड़म से हल निकाला है।
उन माँ-बाप को बुढ़ापे में बाँट लिया जिन्होंने हमें पाला है।।
ख़ुद के बँटने की बात पर माँ ग़ुस्से में कुछ बुदबुदा रही थी।
लेकिन आँखों में आशू लिए मेरे बाबू जी खड़े थे मौन।।
प्रश्न ये है कि बूढ़े माँ-बाबू को…………………………
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ब्राह्मण आशीष उपाध्याय
#vद्रोही

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शाम-सुबह जब भी तुम्हारी ये यादें आ जाती हैं।
इस पत्थर दिल को बेचैन कर के ही शायद सकूँ पाती हैं।।
तुम कैसे किस हाल में होगे जब इसका ख़याल आता है।
गला रुआँधा होता है और ये आँखें डबडबा जाती हैं।।
ब्राह्मण आशीष उपाध्याय

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लाख बुलाओ हम तुम्हारे बुलाने पर आए भी तो क्यों
कैसे काटी है सब-ए-हिज्र हम तुमको बताए भी तो क्यों।
बेताबी,बेसब्री और बेक़रारी तुम्हारे दीदार की।
तुमसे है बेपनाह इश्क़ पर तुमको जताएँ भी तो क्यों??
सोचा था कि जब रूठोगे तो मना लेगें तुमको।
अब जब रूठे हो रूठे रहो तुमको मनाएँ भी तो क्यों?
तुम चाहते हो कि पीछे से आकर मूँद लूँ मैं तुम्हारी आँखें।
हम तुमको इस तरह से सताएँ तो सताएँ भी तो क्यों ?
ब्राह्मण आशीष उपाध्याय
#vद्रोही

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हर मुश्किल समस्या का हम हल निकालेंगे।
यकीन है आज नहीं तो हम कल निकालेंगे।।
दब गई होगी बिके मीडिया में सिसकियाँ हमारी।
कि अब न दबेगा बिके हुए अख़बारों में दर्द हमारा।
चीखेंगे चिल्लायेंगे आवाज़ इतनी हम प्रवल निकालेंगे।।

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चलो आज कुछ कर जाते हैं
सारी हदों से गुजर जाते हैं
दुनिया साथ जीने न देगी
चलो हम साथ मर जाते हैं

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दिमाग़ को मन के विरुद्ध करना होगा।
इस मासूम दिल को क्रुद्ध करना होगा॥
जानता हूँ नामुमकिन है उसे भूल जाना।
उसे भूलने को ख़ुद से युद्ध करना होगा॥
गुनाहों सा कर बैठा उसे दिल में बसाकर।
निकाल कर उसे दिल को शुद्ध करना होगा॥

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