Bobby Sodhi   (बॉबी_सोढ़ी_दीदार)
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Joined 20 September 2018


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1 AUG AT 9:13

काश हमें भी हासिल ये मुक़ाम होता
किसी के हिचकियों में आने का गुमान होता

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30 JUL AT 12:29

लास्ट कॉल …

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21 JUL AT 11:47

— Bobby Sodhi की लेखनी से

हरी साड़ी की झालर में,
इक आस लिपटी रहती है…
पिया के नाम का साज लिए,
हर सावन बहती रहती है।

मेंहदी के पत्तों में छुपकर
उसने चुपचाप इक दुआ बोई,
जिसे तीज की रेशमी डोरी ने
हर साँस से सींचा, हर पल में खोई।

कलाई की चूड़ियाँ खनकती हैं
पर खामोशी नहीं टूटती,
कहाँ जान पाता है कोई—
प्रेम की असली भाषा तो… प्रतीक्षा होती है।

झूले पे जब सिहरती हवा
उसके कानों में कुछ कहती है,
तो वो मुस्कुरा के आँख मूँद लेती है—
शायद वही तो है,
जिसे व्रत की चुप्पी ने बुलाया होता है।

वो पूछती नहीं कभी कुछ भी,
पर कहती बहुत कुछ है…
बाँधकर अपने विश्वास को
एक रेशमी डोरी में।

यह तीज बस पर्व नहीं,
यह प्रेम की मूक परंपरा है —
जहाँ नारी सिर्फ़ व्रत नहीं रखती,
बल्कि खुद को समर्पित करती है
उस एक के लिए
जो उसकी दुआओं का सच्चा उत्तर है।

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17 JUL AT 23:45


तुम सुनाना,
मैं इत्मिनान से सुनूँगी…
पर वक़्त लेकर आना कभी —
कुछ मैं भी दिल की कहूँगी।

कभी सोचो,
तो ज़िंदगी पर हँसी आती है,
और कभी —
ज़िंदगी मुझ पर हँस कर
चुपचाप निकल जाती है।

जाने कैसे भरम में जी रहे हैं
रोज़ तिल-तिल मर कर भी
ऐसा लगता है —
जैसे वाक़ई…
हम जी रहे हैं।

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19 JUN AT 21:41

इक उम्र गुजर गई उम्र से पहले
इक उम्र है कि गुजरना नहीं चाहती

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15 JUN AT 22:32

“पिता”
एक शब्द नहीं,
पूरा जीवन होते हैं।
वो छाँव ..जो बिन कहे
हमेशा सर पर रहती है
वो ढाल..जो सारे जहां से टकरा जाती है
वो हिम्मत.. जो सब कुछ करने का जज़्बा देती है
“पिता “
जिनका प्यार ज़ुबान से नहीं
आँखों से उमड़ता है..
“पिता” ,
सिर्फ़ इंसान नहीं
एक मजबूत दरख़्त हैं…
जिसके साए में महफ़ूज़ होने का एहसास होता है

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29 MAY AT 14:58

जाने कैसे उम्र से बग़ावत कर जाती हूँ
मैं जब माँ के पास होती हूँ तो बच्चा बन जाती हूँ

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22 MAY AT 0:20

हर दरवाज़ा
सिर्फ़ बंद नहीं होता —
कभी वो थका होता है,
कभी टूटा हुआ,
तो कभी बस…
उम्मीद से बोझिल।

“हर चुप्पी के पीछे कोई कहानी होती है —
और हर दरवाज़े के पीछे कोई इंतज़ार।”

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14 MAY AT 23:41

मौसम का मिज़ाज बदल गया था
रह-रह कर बिजली कौंध रही थी
झमाझम बारिश तीखी आवाज़ के साथ
अपनी गिरफ़्त में आने वाली हर चीज़ को
बेतहाशा भिगो रही थी
दरख़्तों के ज़ोर ज़ोर से हिलने से
इक अजीब सी सनसनाहट फ़िज़ा में गूँज रही थी
बाहर इक डर का माहौल था
मानो क़ुदरत बग़ावत पे उतर आई हो

मगर भीतर इक सन्नाटा था
जो उससे भी कहीं ज़्यादा भयानक था

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14 MAY AT 23:22

समझ में नहीं आ रहा था ,
माँ के जन्मदिन के लिए
क्या अच्छा गिफ्ट भेजूं ?
मैंने माँ के साथ की
अपनी कुछ तस्वीरें
❤️ के emoji साथ
उनको भेज दी

सचमुच माँ की ख़ुशी देखने लायक थी…

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