–आर_पी_विशाल
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ब्राह्मणों को पता है कि आर्यों ने बौद्ध सभ्यता को नष्ट करके ही वैदिक सभ्यता की नींव रखी गई थी और उसके बाद ही तमाम शास्त्र गढ़े गये, वर्णव्यवस्था बनाई गई और ऊंच, नीच तय किये गये। हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा धर्माधिकारी शंकराचार्य कहलाता है। शंकराचार्य वह वास्तविक इतिहास जानते हैं जिसपर हम यदा, कदा प्रकाश डालते रहते हैं। बातें खुलकर सामने नहीं है इसलिए अधिक लोगों को हम मनगढ़ंत लगते हैं।
—आर_पी_विशाल
(पूरा लेख Caption में देखें!)-
पोस्ट की बात पर उसके बाद आऊंगा पहले यह बताना चाहता हूं कि देश में दलितों पर सर्वे एक कराया जाय कि उनके साथ जातिवाद होता है या नहीं तो 99 प्रतिशत दलित, शोषित, पीड़ित वर्ग हाँ कहेगा और 1 प्रतिशत नहीं। इसी तरह सवर्णों पर से पूछा जाय कि क्या इस देश में जातिवाद होता है? तो 99 प्रतिशत इंकार करेंगे और 1 प्रतिशत ऐसे भी हैं जो हां करेंगे।
#आर_पी_विशाल
(पूरा लेख ‘Caption' में देखे!)-
डॉ अम्बेडकर अपनी किताब में लिखते हैं कि "वे धन्य हैं जो अनुभव करते हैं कि जिन लोगों में हमारा जन्म हुआ है, उनका उद्धार करना हमारा कर्तव्य है। धन्य हैं वे, जो गुलामी का खात्मा करने के लिए सब-कुछ न्यौछावर करते हैं, और धन्य हैं वे, जो सुख और दुख, मान और सम्मान, कष्ट और कठिनाइयों, आंधी और तूफान की परवाह किए बिना तब तक संघर्ष करते रहेंगे, जब तक कि अस्पृश्यों को उनके मानवीय जन्मसिद्ध अधिकार न मिल जाएं।"
पर्यावरणविद् सुंदरलाल एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे लेकिन जन्म से क्रांतिकारी कोई नहीं होता है बल्कि परिस्थितियों के अनुसार इस श्रेणी में सम्मिलित होते हैं। मन में क्षोभ उठना स्वाभाविक है कि पेड़ों के कटने पर मनुष्य दुःखी हो जाये लेकिन दलित के पीटने, अपमानित या प्रताड़ित करने, दुर्व्यवहार करने, उपेक्षित तथा वंचित रखने पर उसे सभ्यता, संस्कृति, महानता समझे?
यह आभास जीवन की बढ़ती उम्र के साथ होता है। गांधीजी को भी हुआ था, बहुगुणा जी को भी हुआ होगा ऐसे ही असंख्य थे जिन्हें यह आभास होता गया। जिन्हें आजीवन आभास न हुआ वह अवचेतन मन से हुये लोग होते हैं, उनका जीवन धरती पर बोझ समान है। वह उस बोझ को ढोते हुये मरेगा मगर मरना सबको है बस गिनती इधर, उधर की होगी। जिनके ध्येय में अंतिम व्यक्ति भी होगा उनको इतिहास उचित जरूर जगह देगा। #आर_पी_विशाल ।-
राजा की तो फितरत है
नंगा रहना।
आप उसका क्या उतार लेंगे?
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