जिस प्रकार किसी से प्राप्त भेंट हम उसी को वापिस भेंट स्वरूप नहीं दे सकते, उसी प्रकार ईश्वर की कृपा से प्राप्त धन संपत्ति हम उन्हें अर्पित नही करना चाहिए, करना ही है तो अपना अहंकार, ईर्ष्या, लोभ समेत अपने कुमांसिकता अर्पित करिए ताकि वो उनका नाश कर आपको श्रेष्ठ बना सकें।— % &