कोई है जो सुन सके !
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सब हो गया है शायद ठीक
अब नहीं चाहिए खुदा से भीख
रो कर नहीं नहीं पुकारूंगा उसे
न हंस कर कोई किस्से खाऊंगा
इम्तिहान में मेरी रजा थी क्या?
बता भी देते वजह थी क्या ?
रोता रहा, चिल्लाता रहा ,
हाल में अपना सुनाता रहा,
आई थोड़ी शर्म भी न के,
जी भर कर रुलाता रहा?
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समाज क्या है?
(बिट्टू कुमार मोदी)
क्या होता है ये समाज और सबसे पहला प्रश्न कौन बनाता है इसे?
मेरे, आपके या हमारे पूर्वज की एक पुरानी सोच है शायद जिसे हम समाज कहते है।
पर क्या वो सोच वो विचार आज भी उतना ही सही है?
क्या ये दुनिया आज भी वैसे ही है जैसे तब थी शायद नहीं
तो फिर क्यों हम आज भी उन्हें ही पकड़ कर बैठे हैं ?
मैं यह नहीं कहता कि वह गलत था, मैं बस ये कहता हूं कि
आज, कल से बेहतर होना चाहिए।
और यह तभी होगा जब बदलाव होंगे ना की पुराने विचारों में बंधे रहने से।
और मेरे हिसाब से इसका सबसे अच्छा तरीका यह हो सकता है कि, हम एक नया समाज बनाए। जो पुरानी विचारों से अलग बिल्कुल अलग।
हां यह थोड़ा मुश्किल है मगर नामुमकिन तो नहीं,
हां इसमें थोड़ा रिस्क भी है, और शायद इसीलिए लोग इस तरह के विचार से दूर रहते हैं।
लेकिन जरा सोचिए जब हमारे पूर्वज भी शुरुआत किए होंगे उन्हें भी तो यह रिस्क उठाने ही पड़ा होगा?
तो एक बार और कोशिश करने में क्या दिक्कत है?
हो सकता है इस बार एक नहीं उम्मीद बने?
हमारा यह नया समाज नए पीढ़ी पर विश्वास करना सिखा दे?
और शायद इस बार भी कुछ अलग हो, क्या यह संभव नहीं?
मैं सबसे कहना चाहता हूं कि आज की पीढ़ी पर विश्वास करके देखें शायद इस बार कुछ अलग हो ।
कब तक पुराने विचार के साथ जिया जाए जानवरों की तरह?
अपनी राय जरूर लिखे कमेंट में?
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मेरा सवाल
आज कुछ बातें कहनी थी, नहीं कोई कविता नहीं, बस आज खुद को लिखनी थी।
तुम्हें नहीं लगता कि, कि ये जीवन कुछ अधूरा है,
मेरा मतलब, हममें से कई लोग अक्सर उदास होते है।
ऐसे में हम चाहे कितना भी हिम्मत वाले हों हमें एक ऐसे साथी की जरूरत तो पड़ती ही है, जो हमें समझे और समझा सके,
हां मैं मानता हूं कि कई लोग भगवान को मानते है, ओर उन्हें ही सारी समस्य बता देते है, लेकिन वो तो केवल एक अनुभव है इनके अलावा कुछ भी नहीं, पर हमारा मन कभी_ कभी हमारे बेहद विपरीत चलता है या, कभी _कभी कुछ ऐसी भी समस्या होती है जहां हमें खुद को खुद ही संभालना पड़ता है, बहुत सारे सवालों के जवाब देने पड़ते हैं,
ऐसे में हमें एक साथी की जरूरत अवश्य होती,
लेकिन हमारे पास कोई ऐसा ना हो तो,
ना हो कोई ऐसा जिसे आप सारी बात बता सके,
ना हो कोई ऐसा जिन्हें प्यार दे सके,
ऐसे में आप क्या करेंगे?-
वादे तो हमने खूब किए अब, कुछ फरियाद भी कर लूं क्या ?
मुद्दतों से मुस्कुराया नहीं कहो, फिर याद कर लूं क्या?
लिखी थी जो किताब उन दिनों मुस्कुराकर
तुम कहो तो उन पे एक और नजर डालूं क्या?
वो तो कागज थे के लिख कर मिटाता तुझे
इन धड़कनों में भी आग लगा डालूं क्या?
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उम्मीद
कभी सोचता हूं, कि अगर कोई मुझे मेरी ही तरह समझे,
तो क्या हो?
ये भीड़ भाड़ की दुनिया अगर सन्नाटे में बदल जाए,
तो क्या हो?
अगर हर किसी के पास एक ऐसा कंधा हो जो उसके हर सुख_ दुख में उसे गले लगा कर कहे, कि मैं हु ना तेरे लिए,
तो क्या हो?
ये जो धोखे बाजी की बातें करती है दुनियां अगर इनमें निस्वार्थ प्रेम हो ,
तो क्या हो?
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दोस्ती
अच्छा सुनो, चलो आज की शाम ,करते हैं दोस्ती के नाम ।
कहो तुम कुछ अपनी, कुछ हम सुनाते हैं,
वो प्यार सा मौसम, कहीं ढूंढ लाते हैं।
वो जो खो गया था कभी, कुछ पल के यादों में,
वो जो रह गई थी कसर, हम सब के इरादों में,
उसे फिर जागाते हैं,
वो प्यारा सा मौसम कहीं ढूंढ लाते हैं ।
हम किसकी बात करें हमें ,
हमें कौन सताता है ,
बस वह दिन कुछ पल के,
हमको रुलाता है ।
कोई कहता है हमसे ,
के कुछ दूर जाओ तुम,
जो पल अब रहा नहीं ,
उसे भूल जाओ तुम।
पर उस पल के एहसासों को,
हम कहां भूल पाते हैं,
कहो तुम कुछ अपनी, कुछ हम सुनाते हैं,
वो प्यारा सा मौसम,कहीं ढूंढ लाते हैं।
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तुम्हें मौत के बाद चाहने के वादे नहीं करूंगा मैं,
इस दौड़ में जो हुई गलती, आगे से नहीं करूंगा मैं,
सुना है मौत हर यादों को मिटा देती है ,
ऐसा हुआ तो कभी याद नहीं करूंगा मैं......
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ख्वाबों की समंदर में,
अब डूबने से क्या होगा।
या तो वह जख्म उभरेंगे,
या, फिर कोई सितम होगा।-