परिंदे को ख्वाहिशों के पंख लगा,
तू उसे सबसे ऊंची उड़ान दे।
न थके वो, न रुके वो..
ऐसी उसमें प्राण दे।-
भीड़ में अकेला हूं ,
लगता शहर का मेला हूं।
सब तो है पर कुछ नहीं।
कैसा मैं अलबेला हूं?
भीड़ में अकेला हूं ,
जैसे शहर का मेला हूं।
चलता हूं पर दिशा नहीं।
बोलता हूं पर शब्द नहीं।
देखता हूं पर दृष्टि नहीं।
जीता हूं पर जीवन नहीं।
कैसा मैं अलबेला हूं?
भीड़ में अकेला हूं ,
जैसे शहर का मेला हूं।।
कभी मस्त हूं, कभी पस्त हूं।
दिशाहीन मैं, कभी त्रस्त हूं।
अपनों में हूं या सपनों में हूं।
न जाने मैं कहां व्यस्त हूं।
ऐसा मैं अलबेला मस्त हूं।
भीड़ में अकेला हूं।
जैसे शहर का मेला हूं।-
एक ही पेड़ के पत्ते है,
अलग टहनियों पे लटके है।
और उन टहनी के सरदार कहते,
हम तो सबसे हटके है।
नकार के उन सरदारों को,
तुम अपनी जड़ों पे अटके रहना।
तुम अपनी जड़ों पे अटके रहना।
एक ही पेड़ के पत्ते हो
उसी पेड़ पे लटके रहना।।
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वो नई पीढ़ी की पुरानी लड़की,
मुझे क्यों अपनी सी लगती है।
शाम ढले , आसमां नीचे
घंटों चांद को तकती है।
बादलों से प्यार है उसको,
और तारों पर वो मरती है।
यूं तो सख्त कहती है खुद को
पर कस के गले लगा लो तो,
मिनटों में रो पड़ती है।
वो नई पीढ़ी की पुरानी लड़की,
मुझे क्यों अपनी सी लगती है।।
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तु जो अपनी चेहरे पे हल्की सी मुस्कान रखती है।
सिर्फ मुस्कान नही, तु मेरी जान रखती हो।-
जिस्म से रूह तक जाए तो हक़ीक़त है इश्क़।
रूह से रूह तक जाए तो इबादद हो जाएं।-
शायरों को शादी जरूर करनी चाहिए।
अगर बीवी अच्छी मिली,
तो लाइफ अच्छी हो जायेगी
न मिली तो शायरी अच्छी हो जायेगी😆😆
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तन्हाई में भी मेरे साथ खड़ी एक परछाई थी।
निसंदेह वो मेरी आई (मां) थी।-
हिरनी जैसी आंखो वाली,
सुर्ख गुलाबी गालों वाली
मध्यम सी मुस्कान लिए,
क्यों आहट दिल पे रखती है....
नाम बता जरा अपना तू,,,
क्या इरादा रखती है......
बंजर भूमि जैसे मन को
क्यों स्नेह से सींचती है?
क्यों ? इस अंधेरे दिल में तू
जगमग रौशनी सा सजती है…
नाम बता जरा अपना तू,
क्या इरादा रखती है........-
कौन है वो लडकी जो मेरे सपनो में आती है।
लहरा के जुल्फें अपनी,मुझे छेड़ जाती है।
धुंधली –धुंधली सी है छवि उसकी,
जो मुझे अपनी ओर बुलाती है।
कौन है वो लड़की जो मेरे सपनो में आती है।
आहिस्ता आहिस्ता मुझे अपना दीवाना बनाती है।
कौन है वो लड़की जो मेरे सपने में आती है।
कौन है वो लडकी जो मेरे सपनो में आती है।।
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