वतन से लगाव कीमती, तब भी, अब भी।सत्य-निष्ठा की कम गिनती, तब भी, अब भी।लुटेरों थे तब विदेशी, यह हम ने शुना है,पर, फिर तो देशवासियों में से सेवक चुना है,अब तो देश न लुटो प्रभुओं, कृपया, विनती।©www.authorbiswajit.in - BISWAJIT Mukhopadhyay
वतन से लगाव कीमती, तब भी, अब भी।सत्य-निष्ठा की कम गिनती, तब भी, अब भी।लुटेरों थे तब विदेशी, यह हम ने शुना है,पर, फिर तो देशवासियों में से सेवक चुना है,अब तो देश न लुटो प्रभुओं, कृपया, विनती।©www.authorbiswajit.in
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