Bipasa Mukherjee   (मेरु का दर्द)
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Joined 18 May 2020


Joined 18 May 2020
16 JUN AT 22:13

"निष्कर्ष, निश्चित है
अनिश्चित केवल काल है!"
Bipasa Mukherjee

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16 JUN AT 22:10

"संभावना स्वयं में इतनी बलवान है कि
असंभव का भी दिल चीर सकती है!"
Bipasa Mukherjee

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16 JUN AT 21:47

"शुभ रात्रि,
अर्थात् पुनः नवजागरण का प्रयास!"
Bipasa Mukherjee

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16 JUN AT 21:44

"स्वागत, खुशबूओं की होती हैं
दुर्गंधों की नहीं!"
Bipasa Mukherjee

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16 JUN AT 21:41

"जीवन के स्रोत में
'भय' भयानक बाधा है,
जो आगे चलकर भयंकर परिणाम लाते हैं!"
Bipasa Mukherjee

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16 JUN AT 21:29

इससे आतिश और है क्या
इश्क़ आज़माइश है और है क्या

इश्क़ सहरा का कशिश और है क्या
बंजर ज़मीं पर बारिश और है क्या
Bipasa Mukherjee

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16 JUN AT 21:14

रंज ओ गम से पुराना निबाह हमारा
हॅंसना भी अब हुआ गुनाह हमारा

इश्क़ में हुआ हाल-ए-तबाह हमारा
मेरे दर्द मेरे ऑंसू अब गवाह हमारा

जाने वाले की राह में  निगाह हमारा
बे-पनाह इश्क़ में ज़िंदगी तबाह हमारा

कैसी शिकवा तुम ही दिल-ख़्वाह हमारा
तुम्ही से टूटे मगर तुम ही ख़ैर-ख़्वाह हमारा

शाम-ओ-सहर गुजरती आह आह हमारा
ग़म का बोझ 'मेरु' अब सर-ए-राह हमारा
Bipasa Mukherjee

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16 JUN AT 20:52

"रिश्ता, सादगी से ठहरता है आडंबर से नहीं।"
Bipasa Mukherjee

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16 JUN AT 9:30

पिता शायद नहीं बन पाए
झूला
मगर ज़िंदगी संतानों की
झूले में झूलते हुए कट जाए,
वो काठ
अवश्य बन गए!
Bipasa Mukherjee

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15 JUN AT 21:25

//पिता//
क्योंकि तुम पिता हो
इसलिए कोलाहल से दूर
स्पष्ट स्वर हो
ताकि हम
बलिष्ठ भाषा बन सकें!
Bipasa Mukherjee

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