Bipasa Mukherjee   (मेरु का दर्द)
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Joined 18 May 2020


Joined 18 May 2020
31 MAR AT 14:41

बेहद जिद्दी होते हैं
कुछ हादसे;
ज़िंदगी के
एक-आध पन्नों पर अपना
अस्तित्व,
वो प्रकट रूप में
रखकर जाते हैं।
Bipasa Mukherjee
©— मेरु का दर्द

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31 MAR AT 10:50

क्षमा
के सम्मुख
सारे अपराध...
घुटने टेक देते हैं
क्योंकि क्षमा
ईश्वरीय स्वभाव है
और अपराध
दानवीय!
Bipasa Mukherjee
©— मेरु का दर्द

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30 MAR AT 11:28

रोते हुए वही मुस्कुराते हैं
जो किसी एक दिन...
जी भरकर
रो लेने का साहस दिखाते हैं।
Bipasa Mukherjee
©— मेरु का दर्द

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29 MAR AT 11:38

कुछ बुनावटों में ग्रंथि उपयोगी होता है
परंतु,
प्रेम और सम्मान के बुनावट में
वही, हानिकारक सिद्ध हो सकता हैं।
Bipasa Mukherjee
©— मेरु का दर्द

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28 MAR AT 20:16

"हुई थी अंतिम विदाई माथे पर
न उभरी कभी चेहरे पर!"
प्रकाश अपने प्रयेसी को विदा करते वक़्त
इतना ही जवाब दे सका था क्योंकि वह जानता था कि चंदा ने जो सवाल किया है उसका उत्तर वह इतना ही दे सकता था।
वो जानता था कि चंदा उससे कुछ भी जवाब पाने से पहले ही जा चुकी है!
चंदा आज प्रकाश से मिलने तो आई मगर सारी उम्मीदें तोड़ कर आई थी।
Bipasa Mukherjee
©— मेरु का दर्द

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24 MAR AT 8:40

अंततः
धरती अपने पास बुला ही लेती है
जो भी आसमान में नकली
उड़ान भरने की कोशिश करता है।
Bipasa Mukherjee
©— मेरु का दर्द

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24 MAR AT 8:32

तुम्हें न भूलने की ज़िद
मुझे हर दम तुम्हारे पास रखती है
हमारे देह की तंत्रिकाऍं नहीं
अपितु हमारा प्रेम दोनों को साथ रखती हैं
Bipasa Mukherjee
©— मेरु का दर्द

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23 MAR AT 21:38

शहादत की
यात्रा
सरल नहीं,
आत्ममुग्धता से
निकलकर
आत्माहुति तक
स्वयं चलकर
आना पड़ता है।
Bipasa Mukherjee
©— मेरु का दर्द

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23 MAR AT 14:28

चिट्ठियाॅं
तुम्हें लिखें जाने से पहले
मेरे हृदय में स्वीकारी गई।
मेरी चिट्ठियाॅं
वो कालजयी संवाद हैं
जो कभी पुस्तक के आकार में
प्रकाशित नहीं हुई।
Bipasa Mukherjee
©— मेरु का दर्द

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23 MAR AT 0:41

सागर महासागर के अतिरिक्त,
सम्पूर्ण पृथ्वी की
लगभग समस्त जल राशि पेयजल हैं;
यद्यपि नमकीन है तब भी
ऑंसू भी!
#विश्व_जल_दिवस
Bipasa Mukherjee
©— मेरु का दर्द

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