"निष्कर्ष, निश्चित है
अनिश्चित केवल काल है!"
Bipasa Mukherjee-
"संभावना स्वयं में इतनी बलवान है कि
असंभव का भी दिल चीर सकती है!"
Bipasa Mukherjee-
"जीवन के स्रोत में
'भय' भयानक बाधा है,
जो आगे चलकर भयंकर परिणाम लाते हैं!"
Bipasa Mukherjee-
इससे आतिश और है क्या
इश्क़ आज़माइश है और है क्या
इश्क़ सहरा का कशिश और है क्या
बंजर ज़मीं पर बारिश और है क्या
Bipasa Mukherjee-
रंज ओ गम से पुराना निबाह हमारा
हॅंसना भी अब हुआ गुनाह हमारा
इश्क़ में हुआ हाल-ए-तबाह हमारा
मेरे दर्द मेरे ऑंसू अब गवाह हमारा
जाने वाले की राह में निगाह हमारा
बे-पनाह इश्क़ में ज़िंदगी तबाह हमारा
कैसी शिकवा तुम ही दिल-ख़्वाह हमारा
तुम्ही से टूटे मगर तुम ही ख़ैर-ख़्वाह हमारा
शाम-ओ-सहर गुजरती आह आह हमारा
ग़म का बोझ 'मेरु' अब सर-ए-राह हमारा
Bipasa Mukherjee-
पिता शायद नहीं बन पाए
झूला
मगर ज़िंदगी संतानों की
झूले में झूलते हुए कट जाए,
वो काठ
अवश्य बन गए!
Bipasa Mukherjee-
//पिता//
क्योंकि तुम पिता हो
इसलिए कोलाहल से दूर
स्पष्ट स्वर हो
ताकि हम
बलिष्ठ भाषा बन सकें!
Bipasa Mukherjee-