कभी निराश,
कभी हताश हो जाती हूँ..
समय की मार है यह सोच
बर्दाश्त कर जाती हूँ..
फिर हिम्मत कर खडी़ होती हूँ
रात के सायें से निकल कर
उजाले की तरफ कदम बढ़ाती हूँ
उम्मीद की किरण लिए
जिंदगी जीने की कोशिश में लग जाती हूँ
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सुंदर रुप ही अगर सुंदरता का मापदंड होता,
तो व्यक्तित्व गुणों से सुसज्जित न होता