भूपेंद्र कुमार साहू   (भूपेंद्र कु."भुषण"✍)
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Joined 6 June 2020


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Joined 6 June 2020

सबके लिये गौरवशाली हो वर्ष 2023
ऐसी शुभेच्छा के साथ
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
सादर 🙏
आपका स्नेहभाजन

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We
Welcomes
You "2023"
We will walk together towards our destination but with new hope and new courage...

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Just don't worry!!!
May Almighty be with you and Family & Friends as well as Crores of your Fans praying for you.
Wish you all the very best for your speedy recovery...🙏🙏🙏

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कोविड के दौरान अस्तित्व में आये प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना 31दिसंबर 2022 से समाप्त कर दिया जायेगा लेकिन उल्लेखनीय है कि साठ साल पुरानी सार्वजनिक वितरण प्रणाली को जनवरी 2023 से एक साल के लिए बिलकुल मुफ्त कर दिया जायेगा, विदित हो कि इस योजना में मुफ्त अनाज का सारा खर्च केन्द्र सरकार वहन करेगी राज्यों की हिस्सेदारी शून्य होगी। मुफ्तखोरी और मुनाफ़ाखोरी को और विकराल होने से इंकार नही किया जा सकता पर सवाल ये है कि क्या यह योजना "राजनीति से प्रेरित है या जन कल्याण से"....!!

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कब, कहाँ, कैसे
जाने-अनजाने
कुछ हो जाये ऐसे
विपत्ति को न्योता देकर
घर से निकलें हों जैसे
लाचारी भी ऐसी
रोयें कि हँसे
खीज होती है
दोष दें तो किसे भला
गरीबी में हो जब
आटा गीला....

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तेरी यादों के मानींद
काश तुम भी होते
जब दिल चाहता
बेझिझक पास चले आते।
तेरी शिकायतों के मानींद
काश तेरे वादे भी होते
बेवजह, बिन कहे ही
मेरे दामन में चले आते।।

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तेरी यादों के मानींद
काश तुम भी होते
जब दिल चाहता
बेझिझक चले आते।
तेरी शिकायतों के मानींद
काश तेरे वादे भी होते
बेवजह, बिन कहे ही
मेरे दामन में चले आते।।

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हर रोज हृदय के होते टुकड़े
जीवन के आघातों से
कुछ कही-सुनी बातों से,
कुछ अनसुलझे जज़्बातों से।
बस बहुत हुआ अब और नहीं
दिल कहता है मुँह बिचका कर।
अपना भी वक़्त आयेगा
थोड़ा तो धीरज धर
मना लेता हूँ हर शाम इसे
ऐसे ही बहला-फुसलाकर...

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लोगों की बातों का मतलब,
हम खूब समझते हैं।
मगर क्या कहें
कि क्यूं हम खुद को
नासमझ ही रखते हैं...

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ऐ ज़िंदगी बस इतनी सी इल्तिज़ा है
आ देख मेरी हालत और बता
तुने दी थी जो मोहल्लत वो
हो गयी है पूरी या अब भी कुछ बचा है
वैसे चाह कोई अब और रही नही
कोई क्षोभ, कोई लोभ भी रहा नही
रिश्ते-नाते भी सब देख लिये
जितना जीना था, जी लिये
अब तक के इस सफ़र में
कितनी बार हंसी हूँ;
कितनी बार रोयी हूँ, अब कुछ भी याद नही
अब कोई सपना भी बचा नहीं
अपना भी कोई अब रहा नही
सब अपने-अपने रस्ते हैं
कुछ एहसास अब तो रिसते हैं
किस बात की अब करुँ दुआ
ले चल अब बहुत हुआ
जो काया तुने दिया था वो भी अब ढ़ल गया
बस आखरी गरज अब शेष रहा
भूल-चूक सब माफ़ हो
और एक सहज ज़िंदगी की सांझ हो...

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