नए साल के नए पर्व में ख्वाब देखता मन है मेरा।
सफलता की ऊंचाइयों को छुलूँ ऐसा लक्ष्य रखता मन मेरा ।।
सुधारकर अपनी गलतियां पुरानी हररोज़ कुछ नया सीखता जाता हूँ ।
किताबों, विशेषज्ञों से प्रतिदिन खुद को में निखरते जाता हूँ ।।
ये बाधाए ते सबको आती है, उनसे ना कभी विचलित होना तुम ।
संवाद करो अपने अंतर्मन से, औऱ सही सुलझाव पाओंगे तुम ।।
इस सुंदर दुनिया में, हो कही तो नाम हमारा ।
बस यही लक्ष्य लिए, हररोज साधना करता तन मेरा....!
- ©स्वनिर्मिति (भूषण)
-