bhupesh Vaidya  
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Not a professional but I write when it becomes difficult to contain
Joined 21 November 2017


Not a professional but I write when it becomes difficult to contain
Joined 21 November 2017
22 DEC 2024 AT 1:42

इंसान और जानवर में फर्क ही कहां है,
दोनों जीने के लिए शिकार करते हैं ।

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21 DEC 2024 AT 23:18

बाहर से आबाद हैं और अंदर से मर चुके हैं इंसान,
कौन कहता है जिंदा लाशें सड़क पर नहीं चला करती।

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21 DEC 2024 AT 23:12

बड़ा ही अजीब है जिंदगी का फेर भी,
घर से निकले हैं घर लौटने की कश्मकश में।

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5 DEC 2024 AT 8:23

ना जाने क्यों चल देते हैं घर से लोग,
थक हार कर घर याद आता है सबको।

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2 NOV 2024 AT 8:22

तुम को जो देखे देखता ही रह जाए,
पुराने परियों के किस्से याद आ जाए,
शालीनता साथ लिए चल रही हो वरना,
इस हुस्न तले तो कत्लेआम हो जाए।

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2 NOV 2024 AT 8:11

मेरे घर में तुम रहती हो,
मेरा घर बेहद खूबसूरत है।

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22 OCT 2024 AT 20:42

गांव का बच्चा शहर देखता है,
शहर का वारिस परदेस देखता है,
अब जब ये देश ही मेरा नहीं,
तो मेरी गरीबी कौन देखता है।

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14 FEB 2024 AT 8:05

For how many more days will it rain,
Oh god please shed your blessings on us

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17 JAN 2024 AT 21:59

प्यारी सी लड़की और गज़ब अदाएं है,
रूप रंग सौंदर्य मानो कूट कूट समाएं हैं,
जो देखें आपको तो देखते ही रह जाएं,
खुशबू भी आपकी, आप ही की हवाएं है ।

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30 DEC 2023 AT 0:01

अंधेरी काली रातों में सपनों से मुलाकातों में,
रोज़ मिलते हैं तुम्हारी काली जुल्फों के तले,
वहां हम दोनों जने बहुत सुकून से होते हैं ,
बिना किसी उलझन के सब मुश्किलों से दूर,
कोई भी हमारे एकांत में बाधा नहीं डालता,
तुम मुस्कुराते हुए होते हो अंदर तक खुश,
ना कोई शिकवा ना कहीं जाने की जल्दी,
मैं तुमको हंसा हंसा कर हंस रहा होता हूं,
और फिर हम सूरज को ढलते हुए देखते हैं,
पीछे कोयल और बाकी पंछी चहक रहे होते हैं,
साथ ही मालती के फूलों की खुशबू भी आती है,
और कहीं दूर बहती नदी की हल्की आवाज भी,
अब ऐसे ही कुछ पलों को यथार्थ में साथ जीना हैं,
उम्मीद है ये स्वपन जल्द ही हकीकत बनेंगे।

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