Bhupesh Acharya   (✍🏻 Bhupeshसुभूनीपेताश)
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Joined 9 December 2020


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Joined 9 December 2020
17 AUG 2022 AT 20:14

सब कविताएं है सिर्फ तुम्हारे लिए
साध्य हो तुम मेरे, और मैं साधक हूं
यही साधना है मेरी, तुम्हें पाने के लिए !

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13 JUN 2022 AT 22:32

जो हर कोई ना लिख पाए
कलम में छिपा इल्म नजर आए !

बाज़ार बहुत बड़ा है आज झूठ का
पर तेरा ऋत कोई खरीद ना पाए !

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27 MAR 2022 AT 14:30

बशर्ते -बशर्ते
बात अनसुनी हो जाए वहां कुछ कहा ना कर
अनदेखी हो जाए जहां तेरी, वहां जाया ना कर

समझ स्वर्ण- रजत का मुक्त सा रहना
हीरक का किसी घोल में ना घुलना !!

याद रख टैगोर का अकेला चलना
वो तपस्वी की अकेली सी साधना !!

दिवा में सूर्य का अकेला दीप्तिमान होना
निशा में चन्द्रमा का एकांकी अभिष्ट होना

बशर्ते - बशर्ते
बात अनसुनी हो जाए वहां कुछ कहा ना कर
अनदेखी हो जाए जहां तेरी, वहां जाया ना कर

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26 MAR 2022 AT 17:05

मन में थी कहीं ना कहीं खोट
यूंही नहीं बड़बड़ाते ऐसे होठ !!

चोरी पकड़ी तो मचाया शोर
उल्टे कोतवाल को डांटे चोर !!

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15 MAR 2022 AT 18:23

जो बुरे थे तो छाती ठोक के सामने बोल !
यूं पीठ पीछे मनगढ़त झूठ मत बोल !!

सुन लेना कभी अपने कहे बड़ बोले वो बोल !
तेरी सुलगाई आग को बुझा पाया कौन ? !!

@ सत्यम परम धीमहि

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27 FEB 2022 AT 16:42

गिराकर अब मत उठाओ, फिर से हमें गिराने के लिए !!
कि अच्छा दिखाना लाजमी है, बस दिखाने के लिए !!

अपने मुंह महान बने रहो सर्वदा, बस जमाने के लिए!
कर चुके हो दर दर खबर,कभी बेखबर रहो हमारे लिए !!

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10 FEB 2022 AT 11:06

जहन में जितना ज़हर है -
उगल दे मेरे वास्ते
मैं जानता हूं -
मुझे अब तेरे इस जहरीले जहन में नहीं उतरना है

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9 FEB 2022 AT 16:28

जो चहरे को भी ना पढ़ सके
वो शब्दों को क्या पढ़ पाएंगे ?

जिनकी जिव्हा उगलती रही जहर हमेशा
वो तेरे वास्ते क्या मीठे शब्द बोल पायेंगे ?

जो लगाव समर्पण का ना समझ सके
वो उपकारों को अपकार ही जताते जाएंगे

जो कभी तेरे अपनेपन को ना समझ सके
तेरे परीवार को तेरे खिलाफ ही भिड़काएंगे

व्यर्थ हे, व्यथा व्यतीत करना बंधु
वो ताने देकर तेरा ही दिल दुखाएंगे

उनके दिए अवसाद को,जीवन प्रसाद बना लेंगे
दग्ध हृदय को अब ज्यादा मलाल से नहीं जलाएंगे

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9 FEB 2021 AT 14:40

जलती है केवल बाती ही
अकेला दिया कहां जलता है
रोशन होता है आलय जब
समर्पण तेल सा मिलता है
जब तक प्रेम_तेल दीए बीच
तब तक बाती जलती जाती है
प्रेम तेल से परिपूरित हुई
पूर्ण समर्पित हो जाती है

इस जगमग लम्हों में बाती
तेरा ही तो त्याग छुपा
दग्ध रही तुम जब तक
रेशा रेशा ना हव्य हुआ

जब अंतिम परिणति आती है
बाती पूर्णाहुति बन जाती है
दिया वहीं रूप लिए है बैठा
पर बाती मिट सी जाती है

पुरुष प्रधान समाज में केवल
नर को ही दिखलाया जाता है
बाती के उत्सर्ग की गाथाओं को
मात्र दिये से भुलाया जाता है

मर्म समझो ये बात है सांची
गर दिया पुरुष, नारी है बाती
कहते है लोग-"दिया जलाएं"
बाती तेरे उत्सर्ग को केसे भुलाएं

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23 DEC 2021 AT 9:31

बहुत कुछ मिला अब तलक.
केवल बदौलत उनकी ...!

बस

इन्हे वापिस लौटा नहीं सकते
ऐसी फितरत नहीं मेरी ...!

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