bhupendra sharma   (Bhupen)
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Fb: baatuni ink
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Joined 8 October 2019


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6 NOV 2021 AT 22:43

लिख दिया है आज हमने, नाम हथेली पर तुम्हारा,
देकर दिल तुम्हें अपना, बदले में रख लिया है तुम्हारा,
होकर अब रकीब का, ना बना देना हमें इश्क का मारा,
मेरी हर सांस है अब तुमसे ही, तुम्हारी बाहों में ही है मेरा जहान सारा।।


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29 AUG 2021 AT 21:25

बैठी हूं इंतजार में साजन के, जाने कब परदेश से वो आएगा,
बेचैन सी रहती हूं मैं अब, जाने कब संदेश उसका आएगा,
कितनी ही गुजरी रातें तन्हा, कितने दिन और मुझे तड़पाएगा,
आ जाएगा मेरी सांसों के चलते, या मौत की सेज पर ही मिल पाएगा।।

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23 AUG 2021 AT 16:34

"फिर एक कोशिश"

उठ खड़ा हूं फिर आज मैं, मंजिल के सपने से हैं रोम रोम खिले,
करूंगा कोशिश हर बार में, चाहे कितनी ही बार मुझे हार मिले।
नहीं हूं हताश मैं विफलताओं से, ना है मुझे जिंदगी से कोई गिले,
लो आज फिर करता हूं कोशिश मैं, कि शायद मंजिल अबकी बार मिले।।

हां पीछे रह गया हूं मुकाबले में थोड़ा, मगर ये तो हैं मेरी ही कमियों के सिले,
जो रुक ना जाता मैं राहों में, तो होते मेरे भी बाग में गुलशन खिले।
जानता हूं ! नहीं आसां डगर मंजिल की, जाने कितने ही कांटे हैं राहों में बिछे,
मगर फिर एक बार किया है बुलंद हौसलें को, कि शायद मंजिल अबकी बार मिले।

निराशा तो मुर्दों की शान है, कोशिश में ही तो हैं जीवन के सारे रस घुले,
हां हारा हूं कई बार तो क्या, आज कदम फिर लक्ष्य की ओर चलें।
सच्ची है लगन, पक्का है इरादा, रोंदूंगा हर बाधा को पैरों तले,
तो निकल पड़ा हूं मैं थामें मेहनत का हाथ, कि शायद मंजिल अबकी बार मिले।।

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26 JAN 2021 AT 14:46

तुम्हें पसंद है दूर-दूर रहना, तो अब तुझे याद हम ना करेंगे,
जो तुझे पसंद नहीं मुझे वक़्त देना, तो तेरा वक़्त बर्बाद हम ना करेंगे।।

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19 SEP 2020 AT 2:00

कद्र तो बहुत थी जहां में हमारी,
मगर फिर गुनाह इश्क़ का कर लिया !

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19 AUG 2020 AT 8:41

"देश की शान - जवान"

गर्व है हमें उन वीरों पर, जिन्होंने अपना खून बहाया है,
देश के लिए जीते हैं वो, और देश ही दिल में समाया है।।

सरहदों पर खड़े हैं, दिन-रात चौकसी करते हैं,
कैसी भी हो बाधा वहां, वो मरने से नहीं डरते हैं।।

मान हैं हम सबका वो, जो शान देश की बढ़ाते हैं,
तत्पर हैं देश सेवा में, और त्याग का पाठ पढ़ाते हैं।।

ऐसे जांबाजो से ही तो, हम आजादी से रह पाते हैं,
कैसा होगा जुनून उनका, जो हर दुख हंसते-हंसते सह जाते हैं।।

नमन है ऐसे वीरों को, हर सिपाही को हम सलाम करते हैं,
वंदनीय है हर सपूत वो, खुद को देश के नाम करते हैं।।

जय हिंद!!

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15 AUG 2020 AT 8:55

"दिवस-आजादी का"

दिवस है आज आजादी का, चलो देश को सजाते हैं,
भारतवर्ष मुक्त है आज, इस बात का जश्न मनाते हैं।।

आओ मिलकर स्मरण करें, देश के बलिदानी वीरों को,
निडर हो छोड़ा प्राणों का मोह, और थामा था शमशीरों को।।

याद रखना है उन बलिदानों को भी, जिनसे मिली ये आजादी है,
प्रेरित हो करें कुछ देश के लिए हम, वरना जीवन की बर्बादी है।।

आपस के मनमुटावों से ही तो, हमने आजादी खोई थी,
विनाश तो फिर होना ही था, जब मानवता सोई थी।।

समझे मोल हम स्वतंत्रता का, खून बहा कर ये हमने पाई है,
कितनी ही थी नींव की इंटें, तब जाकर मुक्ति की इमारत बनाई है।।

आजाद हूए सब के समर्पण से, और ये धर्मनिरपेक्ष देश हमने पाया है,
हिंदू मुस्लिम का भेद छोड़ो, यह जैसे एक काला साया है।।

आज हम आजाद हैं, इस आजादी को अब खोने नहीं देंगे,
देंगें संदेश भाईचारे का जहां को, देश के टुकड़े होने नहीं देंगे।।

जय हिन्द!!

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2 AUG 2020 AT 19:03

"हां! मैं वैश्या हूं"

रोज जाने कितने ही जिस्मों की प्यास बुझाती हूं,
चंद रुपयों के लिए खुद को बेच आती हूं,
तब जाकर कहीं पेट की भूख मिटा पाती हूं,
हां! मैं वैश्या हूं।।

मर्जी नहीं चलती मेरी, और रोज नोंची जाती हूं,
मेरे भी हैं अरमान बहुत, पर चुपचाप सब सहती जाती हूं,
मेरे बस में होता, तो ये करती ही क्यूं, बस ऐसे दिल को बहलाती हूं,
हां! मैं वैश्या हूं।।

दुतकार देते हैं जो शरीफ दिन के उजाले में मुझे,
रात के अंधेरे में फिर उनको अपनी गली बुलाती हूं,
ऐसी दोगली दुनिया में, मैं अपना काम चलाती हूं,
हां! मैं वेश्या हूं।।

लिप्त हूं अब ऐसे काम में, तो बलात्कारियों को भी कुछ कहना चाहती हूं,
मत नोंचो जिस्म मासूमों के, आओ मेरे पास, मैं सब की हवस मिटाती हूं,
तुम जैसे लोगों के लिए ही तो, मैं ये काम करती जाती हूं,
हां! मैं वैश्या हूं।।

निकलना चाहूं जो मैं इस दलदल से, तो वापस धकेल दी जाती हूं,
चाहूं गर किरण रोशनी की, तो इस काली दुनिया का साया ही पाती हूं,
मेरे बस का कुछ नहीं है यहां, तो बस चलो आज फिर खुद को बेच आती हूं,
हां! मैं वैश्या हूं।।

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2 AUG 2020 AT 18:14

बहते रहते हैं अश्क मेरे, आंखों में रहना अब इन्हें अच्छा नहीं लगता,
गम ही मिले हैं हर मोड़ पर मुझे, कोई भी अब मुझे सच्चा नहीं लगता।।

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24 JUL 2020 AT 11:21

बेबाक सा लिखता था कभी,
ना जाने क्यूं अब ख्याल दिल में नहीं आते,
कुछ बेड़ियां सी हैं मन और कलम के बीच,
उन बेड़ियों की उलझन में शब्द सुलझ नहीं पाते।।

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