Bhupendra Kumar   (भूपेंद्र)
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खुद को खुद से ढुंढने कि ख्वाहिश है
किसी फसाने में किसी बहाने से
Wish me 10 November
Joined 17 January 2019


खुद को खुद से ढुंढने कि ख्वाहिश है
किसी फसाने में किसी बहाने से
Wish me 10 November
Joined 17 January 2019
16 APR AT 0:28

हम कहाँ अपने शौक़ से मिलतें हैं कहीं
वो जिधर जाता है उधर मै नहीं जाता

मैंने देखा है किस्मत कि लकिरों को बदल के भी
जो उभर आता है वो फिर कहीं नहीं जाता

मै तन्हा हुँ बैठा यही सोचकर कहीं
मै सच से परेशां हुँ मुझसे झूठ कहा नहीं जाता

एक दर्द कि तासीर है मेरे लहजे में मगर
ज़माने को बताकर मुझसे रोया नहीं जाता
"भूपेंद्र"

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30 MAR AT 12:03

छुकर लबों को मेरे करता है शिकायत पैमाना
भीड़ है महफ़िल है मगर क्यों तन्हा है पैमाना
आपकी तलब लगी थी सो हमने यूँ कर लिया
यादों संग बैठ आपके उठा लिया फिर पैमाना
रहे न गम दुनिया का मुझको बस इसी शुकूँ के लिए
शाम गुजारा मैखाने मे हमने पि रहा हुँ पैमाना
सफर लम्बी है ज़िन्दगी के रहगुजर के लिए
साथ अपने मै चल रहा हुँ और चल रहा है पैमाना
मुकम्मल रहे दोनों जन्नत और जहन्नुम का सफर
मचलती रहे दोस्तों कि महफ़िल छलकती रहे पैमाना
"भूपेंद्र"

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3 DEC 2024 AT 21:55

बे-जुबां सा होता जा रहा हुँ तेरी सोहबत में
ऐ ज़िन्दगी तुने मुझे खामोश रखा है बहुत
"भूपेंद्र"

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16 OCT 2024 AT 13:35

तुझे याद कर के रोएं तो क्या रोएं
आँखो में बरसात कर के रोएं तो क्या रोएं
छुपा लेते हैं तेरा गम भी हम दोस्तों से बातों मे
तेरा ज़िक्र कर के रोएं तो क्या रोएं
"भूपेंद्र"

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15 OCT 2024 AT 1:08

हुई थी गफलत कि फिर हसीन होगी ज़िन्दगी
हमने ज़िन्दगी में फिर मोहब्बत को देखा था
"भूपेंद्र"

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21 SEP 2024 AT 18:07

क्या हसीन ख्वाब था मत पुछिये
हर तरफ नक़्श आप था मत पुछिये
इक तरफ हया थी इक तरफ निगाह
मतलब सब साफ था मत पुछिए
ज़ोर-ओ-आजमाइश थी तकल्लुफ भी था
इत्तेफाक ही इत्तेफाक था मत पुछिए
जा मिलें हम उनसे जकड़ ले बाँहो में भी
कवायद ये गुनाह-ए-माफ था मत पुछिए
ले बलाएँ हम जुम्बिश-ए-लब कि उनकी
जो नाम पे हमारे इसराफ था मत पुछिए
वक्त-ए-दरिया का था बह जाना मगर
रुखसत-ए-यार हि खिलाफ था मत पुछिए
(इसराफ-खर्च करना)
"भूपेंद्र"

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13 SEP 2024 AT 0:10

तुमसे बेहतर तो हो सकता है मगर, कोई तुम सा नहीं हो सकता
मेरा इश्क भी कितना अजीब है, किसी और से नहीं हो सकता
"भूपेंद्र"

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18 AUG 2024 AT 0:54

वो एक तेरा तसव्वुर है जो निकलता नहीं ज़हन से
भूलने को तो हम जमाने से खुद को भूलाये बैठें हैं
"भूपेंद्र"

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5 AUG 2024 AT 14:11

इतनी शिद्दत से भी कोई चाहे न किसी को
जो मिलना न हो तो जिन्दगी हराम हो जाए

जो हो सके तो इस सफर के आखिरी मोड़ पे
मौत आए और मुसाफ़िर को आराम हो जाए

अच्छा नहीं लगता मर्दों के आँखों मे आएं आंसू
जा कह दो कि दर्द में ये कहीं और गुमनाम हो जाए

धड़कनो का धड़कना भी हो तो ज़रा तहज़ीब से धड़कें
ऐसा ना हो कि शोर हो और आदमी बदनाम हो जाए

मोहब्बत मे जायज़ नहीं ये सलीका बिछड़ने का
कि मुद्दतों का साथ हो और फिर इंतकाम हो जाए

हमने सिखा है कि आशिकी के दौर मे आशिक
इतनी जहमत उठा लेते हैं कि नाकाम हो जाए
"भूपेंद्र"

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19 JUL 2024 AT 22:52

देखना, ये ज़मीं, ये आसमान, फिर न होगा
मेरी जाना, ये दिल, ये अरमां फिर न होगा
ये मोहब्बत कि तन्हाई है, जो तू चाहे तो तेरा होगा
जो किस्मत फिर कहीं बदली तो ये आशिक तेरा न होगा
"भूपेंद्र "

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