कुछ ऐसा सा आया वो
आया सो आया
मगर मेरा ना हो पाया वो
मै चाहूं उसे दूर से
दूर से जो चाहूं, नजदीकियों का दर्द नहीं
खामोशी में इकरार करू
जो खामोशी में करू, इनकार का कोई वजूद नहीं
अकेले ही प्यार करू, इबादत करू
उस अकेलेपन में वो सिर्फ मेरा रहे किसी और का नहीं
हवाओं में ही छूआ करू, चूमा करू
वो जो हवाएं मेरे होंठों से भी नर्म है,
उसे महसूस हो जाए, मगर एहसास हो सके नहीं
उसे सपनों मै कुछ यूं पकड़े रखु, बहो मै अपने रखु
वो जो सपनों मै रहे, तो उसका कोई अंत hi नहीं
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