आईने में खड़ा शख्स मुझसे संतुष्ट हो गया ,
क्या खूब उठ गया आज मैं अपनी नजरों में !-
मेरी अहमियत नहीं कुछ खास मुझमें
क्या फर्क पड़ता हैं
फर्क पड़ता हैं
अगर मेरा किरदार दिलो पर असर छोड़ता हैं
मेरी कितनी कोशिशें नाकाम रही
क्या फर्क पड़ता हैं
फर्क पड़ता हैं
अगर मुझ सा मुसाफिर सफर छोड़ता हैं
मुझे कोई ज़िद्दी करार दे
क्या फर्क पड़ता हैं
फर्क पड़ता हैं
अगर मेरा मन जुनून–ए–हौसला छोड़ता हैं-
याद –ए – माजी के अजाब बयां किससे करू ,
मिल न पाया मुझें मुद्दतों बाद भी गमगुसार कोई !-
वे दरख़्त जो हर ऋतु का
डट कर सामना नहीं करते
सच हैं फिर वे लंबी उम्रें जिया नहीं करते-
मिली सफलता की संतुष्टि से
सराबोर हो जब अन्तर्मन
तो पिछ्ली असफलताओं का
रह जाता कोई अर्थ नहीं-
यारों की मौजूदगी गर ना होती ,
तो गुलजार सी लगने वाली ये जिंदगी बेजार होती !
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एक बात ऐसी हैं कि अपनी कहानी का अंत जानता हूँ मैं ,
बात ये भी हैं कि उम्मीद छोड़ना नहीं चाहता हूँ मैं !!-
जब भी मेरी माँ की मुस्कुराहटें महक उठती हैं
लगता है मानो , जिंदगी मुस्कुरा उठी हैं !!-
मुरलीधर यूँ बसे हुए नयन में
मनो बदरा छाये हुए गगन में
प्रेम माधुरी जिनकी बसी हैं पवन में
उस ईश की भक्ति में मनमस्त मगन मैं
अपना जीवन बेमिसाल करती हूँ जगत में
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