उस रब से मेरी बस एक ही दुआ है,
कि जो तुझे ठीक लगे तू वो कर,
सच- झूठ, सही- गलत तू वो सब कर,
कि अपनी करनी का हिसाब भी तू अपने पास रख।
हां लेकिन मुझे अगर कुछ दे सके तो सुकून दे,
कि गम गए अब खुशियां आई ये भरोसा दे,
कि अब से सिर्फ चैन की नींद होगी ये वादा दे,
कि एक दिन तो ये सब पक्का ठीक होगा ये उम्मीद दे।।-
Don't regret anything in life,
'Cuz life is too small to regre... read more
वक्त से वक्त चुराकर जो वक्त लाए हैं,
वो वक्त तो रेत सा फिसलता जा रहा है।
जिंदगी एक और काम करने अनेक है,
पर वक्त भी हाथ से वक्त- बेवक्त निकलता जा रहा है।-
कभी कभी सजदे में रब से क्या मांगू,
ये समझ नहीं आता।
ये कहूं या जाने दूं, वो मांगलू या रहने दूं?
सही बात बोलूं, या गलत ही बोलदूं ?
कश्मकश जो सही गलत की है,
वो खयाल भी तो समझ नहीं आता।
क्या ऐसी ही उलझनों में सब फसें हैं, या फिर बस में ही हूं?
मैं नहीं तो हम सब क्यों, और मैं हूं तो मैं ही क्यों?
क्या ये सवाल में रब से करूं या जाने ही दूं,
ये एहसास समझ नहीं आता।
क्या में ही इस रेगिस्तान में, बे- सिमत सी भटक रही हूं,
क्या मैं ही बस सबसे आखिर में अकेली रह गई हूं,
क्या मेरे पास उतना वक्त बचा है,
कि उतना वक्त कितना है, और जितना है क्या वो काफी है?
ये हिसाब कुछ समझ नहीं आता।
कि रब के आगे में खाली सी क्यों हूं,
कि बिना बात - हर बात में, मेरी आंखो में आसूं क्यों?
कि खुलकर हसने में इतनी दिक्कतें क्यों,
कि हर वक्त ये दिमाग इतना थका हुआ क्यों?
कि हर बात - बिन बात के ये डर क्यों,
कि इस अंधेरे से बाहर आने का कोई इलाज नहीं क्यों?
ये हकीकत सा ख्वाब मुझे समझ नहीं आता।
अब समझ नहीं आता तो नहीं आता,
इस बात को ही अगर में समझने बैठूं,
तब भी कुछ समझ नही आता,
ये खुद से खुद के सवाल का जवाब,
मुझे समझ नहीं आता।।-
तू ही मुझे अपने दिल की बात, बता पाता नही,
और जो मैं तुझे बताती हूं, वो तू समझ पाता नहीं ।
तेरे हर दर्द की वजह मैं हूं,
तेरे आंसू, तेरे गम, तेरे दुख, वो तेरी आंखें नम,
इन सबकी वजह मै हूं।
तेरी जिंदगी में जो आराम नहीं, तेरी रातों की ये जो नींद नहीं सही,
इन सबकी वजह मैं हूं।
तेरे काम को भी ना समझ पाती हूं, ना तुझे आराम से मैं रहने देती हूं,
तेरे गुस्से, तेरे चिड़चिड़े पन, तेरी खीज
उन सबकी भी वजह भी मैं ही हूं।
तेरे जीवन में खुशी नहीं, तेरे मन में जो ये सुकून नहीं,
उसकी भी वजह मैं ही हूं।
तू शायद सोचता नहीं या ना ही चाहता है,
कि हर बार मेरी ही गलती क्यों?
कि मुझे ही हमेशा क्यों कसूरवार ठहराता है।
तुझे शायद महसूस नहीं होता,
लेकिन जाने-अंजाने में इन चीजों का एहसास,
तू मुझे पूरा कराता है।
बातें तो ये सच्ची है पर क्या बातें ये पूरी हैं,
कि क्या वाकई में वजह सिर्फ मैं ही हूं ,
या बातें ये भी अधूरी हैं।।-
हमेशा हड़बड़ी में रहता है मेरा ये दिमाग ,
जैसे मानो रेत हाथों से फिसलती जा रही है।
कुछ यूं अशांत सा, हमेशा भागता रहता है मन मेरा,
जैसे मानो हर चीज़ हाथों से निकलती जा रही है।
अब देखो! ना दिल में सुकून है ना दिमाग में,
तभी तो रातों को नींद मेरी कहीं दूर जाती जा रही है।
अब अपने इन हालातों पर हम हसें या रोएं,
इसी कश्मकश में जिंदगी भी गुज़रती जा रही है।।— % &-
हाथ किसी और का थामा,
और रूह में किसी और को छुपाए रखा है।
प्यार उसका कोई और ही है,
और हमसफ़र वो किसी और का बन बैठा है।।— % &-
होने वाला कल मुझे सता रहा है,
क्योंकि वो मुझे आज ही नज़र आ रहा है।
हां जो कल हुआ नहीं उसके लिए मुझे काफी ज़्यादा रोना आ रहा है,
क्योंकि आज से ही किसी को खोने का डर अंदर से बेहद खाए जा रहा है।
हो सकता है और में यही चाहती हूं की जो कल दिख रहा है, वो सब झूठ हो,
लेकिन आज के नज़रिए से तो वो कल बिल्कुल सच सा नज़र आ रहा है।
जो कल मुझे आज सता रहा है, रुला रहा है, डरा रहा है,
जो हुबहू आज सा नज़र आ रहा।
वही होने वाला कल जो मुझे कल दिखना चाहिए था,
वो आज और इसी ही पल से मुझे तरसा रहा है।
क्योंकि जो मैं नहीं चाहती वो सब मुझे नज़र आ रहा है।।-
ये किस्सा किसी अपने या पराए का नहीं है।
सबसे आखिर में रह जाने वाले तुम और तुम्हारे खालीपन का है।।
चाहे गलती किसी की भी हो, इल्ज़ाम तुम्हे अपने सर पर ही लेना है।
तुम्हारा गुस्सा, तुम्हारे जज़्बात, उस से किसी को क्या मतलब,
गैर हो या चाहने वाले, सभी को बस खुद को ही सही साबित करना है।।
शायद गलती तुम्हारी ही है, जो चीज़ों को इतना दिल से लगा बैठती हो।
तुम आस पास देखकर लोगों से 'बात और तुम्हे'
नज़र अंदाज़ करना क्यों नहीं सीखती हो।।
फिर रातों को अपनी नींद उड़ा देती हो,
और ये क्या! आंसू ये तो जैसे आंखों पर ही बैठे हैं,
बह ही जाने दो इन्हें, ये कोई मोती हैं क्या जो आंखों में सजाकर रखें हैं।
पानी ही तो है, अब चाहे पूरी रात बहे या पूरी जिंदगी,
इतनी भी कोई बड़ी चीज़ थोड़ी है।।
अब देखो! दुनिया तो अपनी ही कहानियों में उलझी है और उलझी रहेगी।
तुम क्या महसूस करती हो , वो यहां किसको ही पड़ी है,
इसलिए तो! बिल्कुल अंत में तुम्हे खुद ही अपनी मदद करनी पड़ेगी।।-
कि वक्त कहीं जल्दी खत्म ना हो जाए,
इसी कशमकश में वक्त गुज़र जाता है।
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Inhe samjhao to ye mujhse dukhi,
Unhe samjhao to vo mujhse pareshan,
Shayad isiliye vo mera gum dekhna bhul jate honge,
Ki haan koi bat nahi shayad meri umar itni badi thodi hai..
Inhe bolo to tum khud zimmedar ho,
Unhe bolo to tumhari hi jawabdehi hogi,
Vo Shayad dimag se nikal jata hoga ki mere kandhe itne majboot nahi,
Ki haan per shyad unke liye ye bojh thodi hai..
Inhe bolo to ye to dastoor hai tum koi pehli thodi ho,
Unhe bolo to ye to hota aaya hai tum koi akhiri thodi ho,
Shayad vo duniya ki bheed me mujhe bhul jate hain,
Ki haan shayad me koi pehli ya akhiri nahi per inki iklauti bhi thodi hu..-