हर घड़ी है शुभ घड़ी ,नई शुरुआत के लिए।
रोको ना बढ़ते कदम, मिथ्या बात के लिए ।
शुभ घड़ी का इंतज़ार करने वाले अक्सर,
पाए अवसरों को खो देते हैं आराम के लिए।
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इजाज़त नहीं है फजीहत की तुझको
नहीं बेचा है मैंने अपना ज़मीर तुझको
परवाह नहीं है अकीदत की मुझको
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प्रेम का पर्याय हो तुम सत्य व न्याय का आधार
सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति हो तुम जग के पालनहार-
मनभावन की स्मृतियों में खोई है सुध बुध
अपनी ही छवि पर रीझ कर, है आत्ममुग्ध-
संस्कृति की विरासत का हैं अनमोल उपहार।
देश की मिट्टी से मिले भारतीयता के संस्कार।
जीवन मूल्यों को धन के ऊपर देकर प्रधानता,
विश्व को दिया सम्यक ज्ञान का अथाह भंडार।
"वसुधैव कुटुम्बकम्" के महाउद्घोष से लेकर ,
"शठे शाठ्यं समाचरेत" का समाहार है संस्कार।
सादगी, समरसता ,संयम और सद् व्यवहार,
जीवन के तिमिर में संस्कार जीने का आधार।
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कौन सा सुख है दुख में कोई समझ नहीं पाए।
कृष्ण चले नंगे पांव राधा के पैर छाले हो जाएं।
सब कुछ खोकर प्रेम पा लेने का सुख असीम,
प्रेम की पीड़ा पाके मानव जीवन धन्य हो जाए।
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फलों का राजा आम होकर भी है खास।
सिखाता आंधियों में बढ़ा लेना मिठास।।-
ख़ुद के फ़ैसले हों या ख़ुदा का फ़ैसला।
गलत होने पर कभी खोना ना हौसला।
गलतियों को मानकर यदि सुधार लोगे,
रुकेगा नहीं सफलताओं का काफ़िला।
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