Bhawna Dutt   (Bhavna dutt)
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Joined 14 April 2020


Joined 14 April 2020
29 JUN 2024 AT 8:35


ना होती रात तो दिन के उजालों की कोई अहमियत ना होती
ना होता दुख तो खुशियों की कोई कीमत ना होती।।
बदलती है लोगों की शख्सियत मौसम की तरह
रात समझाती रही ना बहा अश्क तू, कदर इनकी जहां को होती नहीं।।

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29 JUN 2024 AT 8:05

कहने को तन्हाई का आलम है,
लेकिन सच कहूं तो बातें हजार होती है।
कुछ दिमाग की सुन लेती हूं , कुछ दिल की कह लेती हूं
फिर मिट जाती है उलझनें जो दिल में हजार होती है।।

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27 JUN 2024 AT 22:16

"हसीन जुल्फों" की शख्सियत, क्या बयां करें तुमको।
जैसे काली रात की आगोश में छुपा हो चांद मेरा।।

महक उठा है आलम, जो खुली यार की जुल्फें।
बिन पिए मदहोश हुआ, ओ "सितमगर" यार तेरा।।

लहराने दो इन्हें, ना करो सितम बांधकर इनको।
इनकी पनाहों में आने को हैं, दिल यूं बेक़रार मेरा।।

तेरी हसीन जुल्फों का साया, कहीं सोने भी नहीं देता।
लगता है हसीन जंजीरों में, हो गया दिल यूं गिरफ्तार मेरा।।



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26 JUN 2024 AT 11:19


क्यूं मेरे करीब आए तुम ।।
बनना था किसी और के नैनो का काजल,
क्यूं मेरी आंखो से ख्वाब चुराए हो तुम ।।
चल रहे थे ज़िंदगी में मुस्तकबिल की खोज में अपनी
बनकर आए मुस्कबिल मेरा, फिर क्यूं हुए पराए तुम।।

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26 JUN 2024 AT 11:06


निकले थे, थामकर दामन आशाओं का
लेकिन सूरज की तपिश से मुरझाए फूलों ने
हालात- ए - हक़ीक़त का अंदाजा करा दिया हमको ।।

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27 DEC 2023 AT 5:35

संग जब से मिला तेरा
जीवन की दशा बदल गई ।
एक दिशाहीन राही को
मानो जीवन जीने की दिशा मिल गई।

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15 AUG 2023 AT 12:24

आओ मिलकर आज मनाए आजादी का शुभ पर्व,
याद करें उनकी कुर्बानी जिन पर है देश की गर्व ।।

मत भूलो किस कीमत पर हमने ये आज़ादी पाई
हँसते-हँसते कई फाँसी चढ़ गए, कई वीरों ने गोली खाई ।।

अब बारी अपनी है यारों, भारत को विश्व गुरु बनाना है,
सबसे ऊँचा लहराए तिरंगा भारत को विश्व विजय बनाना है।।

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11 APR 2023 AT 13:24

कि आवाज़ें आज भी इस कदर झिंझोड़ती हैं मन को
यूं बिखर जाते हैं यादों के मोती फिर से सिमटने को ।

इन आवाज़ों से पीछा छुड़ाकर चले तो आए तन्हाई में
लेकिन ये वादा है एक दिन लौटेंगे, फिज़ा में महकने को ।

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1 FEB 2023 AT 14:30


फिर से दिल की बेकरारी इस कदर बढ़ाने लगी है
लगने लगा है कि कहीं फिर से प्यार ना हो जाए ।
फिर से दिल हसीं गुस्ताखियां करने लगा है
डर है कि फिर जमाने में कोई बवाल ना हो जाए ।
वो है कि मुँह फुलाए बैठे हैं इन हसीं फिजाओं में भी
कहीं वक्त गुज़र जाए और ज़िंदगी मौत का शिकार हो जाए ।

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3 JAN 2023 AT 21:47

लतीफ़-ए-इश्क से महरूम क्यूं आजकल की फिज़ा हो गई है
सर्द हवाएं भी नफरतों में जाने कहां गुमशुदा हो गई
हर तरफ सिर्फ दहशतगर्दी का माहौल है चांद-रातों में
ना जाने क्यूं आजकल इश्क "आफताब" सा और हुस्न "श्रेया" सी हो गई।

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