सवालों के घेरे में खड़े हैं सब सोचते हैं,आगे क्या होगा अब व्यर्थ की चिंताएं हैं मन में घोर निराशा लिपटी हैं चितवन में मन में न विश्वास रहा न ही स्वयं का आभास रहा भूत की पीड़ा में स्वयं को खो रहे भविष्य की चिंता में चैन से न सो रहे कर्मों के परिणाम पर विश्वास रख निडर होकर चलना होगा अब तभी आशा की किरण दिखेगी देर से ही सही मंज़िल अवश्य मिलेगी