अच्छी किस्मत और मौत का क्या भरोसा कब किस मोड़ पर टकरा जाए
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फिर बदला मोसम
फिर बहार आई
चलो
किसी बहाने से ही सही
हमारी याद तो आई ✍
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पतझड़ में वो झड़ गए पत्ते ।
सूख गयी वो डाली।
दर दर ठोकर खाए वो ।
जिसने माँप्यो दी कदर ना जानी ।
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कल क्या था
आज क्या है
कल क्या होगा
सोचने से बेहतर है अभी मे जिया जाए
ये वक़्त का पईया हैं जनाब जाने कब पलट जाए।-
ताह उम्र सबकी खुशियोँ पर लुटा देती हैं।
ताह उम्र सबकी खुशियोँ पर लुटा देती हैं।
खून की क्यारी से भी महकता फूल खिला देती हैं।
फिर क्यों औरत बेचारी औरत कहलाती है।
हर वक़्त मुस्कान चहेरे पर
हर वक़्त नूर सा रहता है।
जिमेदरिओं का बोझ भी तो काँधे पर ब्राबर का रहता हैं।
सपने देखना खेलना कूदना सब बारा बार मे ही आता हैं।
फिर क्यों औरत बेचारी औरत कहलाती है।
बढ चड कर हिसा काम मे साथ संग्नि सा निभाती हैं।
हर महीने अपना खून वो बहाती हैं।
अरे इन सब के बावजूद फिर क्यों वो बेचारी औरत कहलाती है।
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आनेवाला पल जाने वाला है।
हो सकें तो उसमें ज़िंदगी बितादो।
पल जो वो जाने वाला हैं।
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