उस उलझन को सुलझा दे,
या इस धड़कन को समझा दे...
कहीं तो माँग रहा होगा वो मुझे...
अगर मिल जाए वो,
तो उस शख़्स से मिला दे...
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कुछ पाना भी नहीं है, पर तुझे खोने का डर भी है।
तुझसे इश्क भी नहीं है, और तेरा होने का डर भी है।-
हर सुबह तेरी चौखट से निकल कर ये दिल,
क्यूं हर शाम तेरे दरवाजे पर ही लौट आता है??-
ऐसी भी क्या क़ीमत रही होगी उनकी ??
जिन्हें हम अदा कर, अपना मुकद्दर भी न बना सकें!-
ये दीवारें कैसी है जिंदगी और मौत की.....
पैसों की ?
जो कभी किसी को नहीं मिला...
मजहब की?
जिसे हमने बनाया...
वक्त की ?
जो कभी रुकता नहीं...
हैसियत की?
जो कभी किसका था ही नहीं...-
हर शाम उनसे बस एक ही ख्वाहिश..
की कुछ तो बात हो जाए...
बेशक कल हो ,या आज हो जाए...-
बिना बात किए भी तुमसे ,
दिल हर की बात कहना,
हकीकत नहीं है,
मुझे तुमसे इश्क करने के लिए,
तुम्हारी भी ,
ज़रूरत नहीं है-
मुझे दूरियों का खौफ भी है,
पर इस दर्द से आज़ादी की तलाश भी है,
दिल के कोने में एक शिकायत है,
कहना तो चाहता हूँ, पर खामोशी की ज़रूरत भी है।-
यूँ ही चल पड़े थे अपने इश्क़ के मंज़र की तरफ...
ठहरने के लिए सहारा भी न था...
अब उनकी बात हम क्या ही करें...
हम तो जहाँ डूबे थे, वहाँ किनारा भी न था...
नज़रें भटक रही थीं हर तरफ,
दिल में शिद्दत का दर्द था,
साथ की उम्मीदें खो गई थीं,
और अब तो एक खाली सा इश्क़ था..
वो दौर था, जब हर ख्वाब में वो ही थे,
मगर अब उन ख्वाबों में, उनकी ख़ामोशी का असर था...
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