मेरी सुबह की टहल में,एक अलग सा सुकून है ।बादलों की आस्तीन सेजब धूप झाँकती हैखेलती है सतोलियाकुछ टूटे बिखरे टुकड़ो संग ।मैं चल के पहुँचता हूँदरख्तों के आसेब मेंजहाँ मेरी परछाई मुझ से ज़्यादा खुशनुमा है ।।(क्रमश:) - CalmKazi
मेरी सुबह की टहल में,एक अलग सा सुकून है ।बादलों की आस्तीन सेजब धूप झाँकती हैखेलती है सतोलियाकुछ टूटे बिखरे टुकड़ो संग ।मैं चल के पहुँचता हूँदरख्तों के आसेब मेंजहाँ मेरी परछाई मुझ से ज़्यादा खुशनुमा है ।।(क्रमश:)
- CalmKazi