Bhavdeep Saini   (Bhavdeep Saini)
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Joined 10 January 2017


Joined 10 January 2017
31 AUG 2021 AT 23:02

*देहप्रेम*

कुछ पुरुषों को मैनें बहुतों बार देखा है
जो स्त्री के वक्ष पर आकर रुक जाते हैं
वक्षों की ऊँचाई देख गिर जाते हैं
घूरने लगते हैं शरीर की बनावट को
और नापने लगते हैं नाभी की गहराई
हम बिस्तर होने को कहते हैं प्रेम
और हो जाते है देहप्रेम के शिकार

इसके विपरीत कुछ स्त्रियां
इसे ही मान लेती है सच्चा प्यार
कर देती है अपना सबकुछ समपर्ण
समय के साथ वक्षों में होता है परिवर्तन
और वो पुरूष निकल जाते हैं
नये वक्षों की तलाश में
नई नाभी की लालसा में....

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30 AUG 2021 AT 17:25

काश! ऐसा हो

मेरे जाने के बाद
काश! ऐसा हो
मेरी लिखी कविताएँ तलाशी जाए
फेसबुक और गूगल पर
फिर पढ़ा जाए उन्हें इत्मीनान से
लोग मेरी सोच की तह तक पहुँचे,
कविता की आत्मा को समझें,
अपने मन में
मेरी एक तस्वीर उकेरे
और कहे,
अगर यह इंसान ज़िंदा होता
तो यकीनन मेरा महबूब होता ।।

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22 JUN 2021 AT 19:31

जब वो मेरे हाथों में आती है
गज़ब का सुकून देकर जाती है ।

उसके लिए रात भर जागता हूँ
सुबह होते ही उसकी तरफ़ भागता हूँ ।

मिट्टी के सिकोरे में परोसी जाती है
शरीर में हलचल बहुत मचाती है
जब नहीं मिलती शाम तक
तो मन विचलित कर जाती है
एक ही चुसकी में सुस्ती दूर भगाती है ।।

मेरे हर दर्द पर दवा सी है
यह चाय नहीं मेरी सख़ा सी है ।।

सुबह होते ही चाय पीता हूँ
शाम ढलने पर चाय पीता हूँ
जब ठंड लगती है तब चाय पीता हूँ
बारिश के मौसम में चाय पीता हूँ
काम से थकने पर भी चाय पीता हूँ
और कुछ काम न होने पर भी चाय पीता हूँ ।।

हर घड़ी हर पल याद मुझे इसकी आती है
हर परिस्थिति में मेरा साथ निभाती है ।।

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16 JUN 2021 AT 19:47

कभी चाँदनी तो कभी चाँद लिखता हूँ
कभी सुबह तो कभी शाम लिखता हूँ
तुझसे मोहब्बत कुछ इस कदर की है
हर मुक्तक प्यार की तेरे नाम लिखता हूँ ।।

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12 JUN 2021 AT 13:58

छुपम छुपाई खेलता था
चोर सिपाही खेलता था
शान्त था मन वहाँ
बिना चप्पल खेलता था ।।

गली गली घूमता था
धूप छांव झूमता था
सुकून था बहुत वहाँ
नंगे पांव चलता था ।।

माँ पर विश्वास था
माँ ही संसार था
माँ का लाड प्यार
दर्द का उपचार था ।।

दौर वो हसीन था
चाँद भी आसीन था
रात थी घनी अंधेरी
रौशनी का अभाव था ।।

ख्वाइश चाँद की थी
चाँदनी की तलाश थी
सितारे थे गर्दिश में
अमावस की रात थी ।।

समय वो लाजबाब था
जब खुला आसमान था
तोतली ज़ुबाँ में भी
साफ साफ बोलता था ।।

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12 JUN 2021 AT 9:08

छुपम छुपाई खेलता था
चोर सिपाही खेलता था
शान्त था मन वहाँ
बिना चप्पल खेलता था ।।

गली गली घूमता था
धूप छांव झूमता था
सुकून था बहुत वहाँ
नंगे पांव चलता था ।।

माँ पर विश्वास था
माँ ही संसार था
माँ का लाड प्यार
दर्द का उपचार था ।।

दौर वो हसीन था
चाँद भी आसीन था
रात थी घनी अंधेरी
रौशनी का अभाव था ।।

ख्वाइश चाँद की थी
चाँदनी की तलाश थी
सितारे थे गर्दिश में
अमावस की रात थी ।।

समय वो लाजबाब था
जब खुला आसमान था
तोतली ज़ुबाँ में भी
साफ साफ बोलता था ।।

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8 JUN 2021 AT 11:52

जब कुछ ना लिखा जाए तो समझ लेना
अभी लिखने को और भी बहुत कुछ है ।।

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7 JUN 2021 AT 12:18

मुक्तक

दिल दुःखा कर मेरा, कभी दूर नहीं जाना तुम
खुशी-खुशी ज़िन्दगी मेरे साथ गुजार देना तुम
प्यार के रिश्ते गलतफहमी से कमजोर होते है
इसलिए गलतफहमी को अनदेखा करना तुम ।।

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7 JUN 2021 AT 12:16

मुक्तक -मोहब्बत

देख कर तुम्हारा चेहरा मैं फिसलने लगता हूँ
थोड़ा संभलता हूँ तो फिर पिघलने लगता हूँ
बाहें फैला कर जब तुम मुझे गिरफ्त में लेती हो
तुम्हारे आँचल की आगोश मैं निखरने लगता हूँ ।।

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4 JUN 2021 AT 19:38

सदी का इकीसवा साल है
हर तरफ पसरा अंधकार है
धुँआ - धुँआ सी ज़िन्दगी है
सब जगह मची खलबली है
हर तरफ बस हाहाकार है
सबको शान्ति की तलाश है
मन भी सबका उदास है
एक विषाणु का उत्पात है
कोविड 19 से विख्यात है
सदी का इकीसवा साल है
हर तरफ बस नरसंहार है
22वां साल बहुत जल्दी आएगा
खुशियों की बहार साथ लाएगा ।।

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