घर से अकेला चल दिया
बस हृदय जीवित आस थी।
पथ शुष्क पथरीला मगर
बड़ी तीव्र जय की प्यास थी।
कुछ कौड़ियां झोली लिए
बहु संपदा विश्वास की।
तप तेज भी झुलसा रहा
छाया सघन उल्लास की।
सम्पूर्ण जग छल कर रहा
तो शक्ति ज्ञान प्रयास की।
सब कह रहे संभव नही
उन्हें क्या समझ इतिहास की।-
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सिकंदर को भगा के बनाया था हिन्दोस्तान
आज की बात थोड़ी है।
जो कह रहे हैं, सही कह रहे हैं
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है।।-
विजयी भारत राष्ट्र पुनः
विजयी राष्ट्रवादिता।
विजयी दिवस स्वतंत्रता:
विजयी आर्य जन बान्धव:।-
अगर तुम मुस्कुरा दो तो
मैं गम सारे ही सह लूंगा।
जो तुम पलके झुका दो तो,
मैं दिन को रात कह दूंगा।।-
सच्चा अगर है तुम्हारा सफर
मंजिल मिलेगी जो होगी सहर।
राहों मे कांटे तो होते ही हैं
मगर तुमको चलना है आठो पहर।
अंधेरे उजाले मे फसना नहीं
रुकना नही कोई रोके अगर।
बड़ी दूर है जो सजाया है घर
अकेले ही चल न कोई हमसफर।-
एकाकी जीवन और अवसाद
सदा प्रशन्नता कहते घर वार।
हो रहे दुखी की जीवन त्यागा
समझो महत्व क्या है परिवार।-
तपती धरती
दो बीघा खेत।
एक जोड़ी बैल
मिट्टी पानी व रेत।
तरबतर स्वेद
दृढ़ जीर्ण देह।
सूखी रोटी
सार रस एकमेव।
पालन कर्ता
अमूर्त हे ग्राम देव।-
वो लड़ा और गिरा
फिर उठा और आगे बढ़ा
वो ना लड़ा ना गिरा
अभी भी वही पर है खड़ा।-
तुलसी जैसा भेष बनाया
पोथी कलम इकट्ठी कर ली
जाने कब पढ़ पाएंगे?
घूम रहे जिज्ञासु बनकर
स्याही घोल दवात बना ली
जाने कब लिख पाएंगे?
ध्यान लगाते आसन करते
धोती छोड़ लंगोटी बाँधी
कब एकाग्र हो पाएंगे?
दुविधा भारी बड़ी मुसीबत
जाने कितने सिद्ध होगये
कब ज्ञानी कहलायेंगे?-
हार गया एक बार तो क्या
जीत की तेरी भूख ना जाये।
बन अर्जुन गांडीव उठा
इस बार निशाना चूक ना जाये।।-