एक खुली किताब सी हैं ये ज़िन्दगी मेरी, जिस पर कही खुशी के पल तो कही गम लिखा है, जिस पन्ने पर फिर भी जैसा लिखा है, मैंने हर पन्ने को उतनी ही खूबसूरती से पढ़ा हैं, कभी किसी सुबह कोई साथी मिला, तो शाम ढले वो भी बिछड़ा है, कागज़ बेशक पुराना सा, मगर गत्ता आज भी नया सा है, कभी किसी पन्ने पर खाली सी खामोशी कोई, तो किसी पर शब्दो में दर्द छिपा है, अब बस इस भरी भरी किताब में ढूंढ रही हूँ,