BHARTENDU BHASKAR   (Bhaskar)
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किरदार में मेरे भले ही अदाकरियां नहीं हैं
खुद्दारी है, गुरूर है,पर मक्करियां नहीं हैं
Joined 23 February 2020


किरदार में मेरे भले ही अदाकरियां नहीं हैं
खुद्दारी है, गुरूर है,पर मक्करियां नहीं हैं
Joined 23 February 2020
5 JUL 2022 AT 22:55

दर्द, ग़म, शिकवे, शिकायतें
सब सोशल मिडिया पर पेलते हो।।
अरे जो भी कहना है सीधे मुँह पर कहो ना,
ये क्या स्टेटस स्टेटस खेलते हो।।

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7 JUN 2022 AT 19:42

बात कपड़ो की नहीं है,
रंग की है।

हम अक्सर कपड़े धोते हैँ,
कुछ कपड़ो से रंग निकलता है,
हम कहते हैँ रंग कच्चा है,
मगर दुसरी बात पर गौर नहीं करते
कि
वही रंग अगर साथ वाले कपड़े पर लग जाये
तो ऐसे लगे कि छुटाये नही छुटे।
जैसे रंग को अब जाकर कोई कम्बख्त मिला हो,
जिस पर उसे लगना था।

सच बोलू तो रंग कच्चे नही होते,
रंग कमजोर नही होते,
उसको सही पात्र नही मिला होता है
कि
"किस पर लगें ".

देर सवेऱ सबको अपना सही पात्र मिलता है,
और फिर छूटता नहीं है।

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5 NOV 2021 AT 16:44

पहले मैने
चांद को देखा खिड़की से,

फिर तुम्हारी तस्वीर देखी।

फिर चांद को देखा
आखिरी बार,

और गिरा दिये
खिड़की के परदे।

अब मैं सिर्फ तुम्हारी तस्वीर देख रहा हुँ!!

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20 AUG 2021 AT 11:44

पीपल बरगद दादा दादी
शोख़ हवा आंगन की छाँव।
कच्ची सडक़ें, पक्की दोस्ती
नदी रेत की, कागज़ के नाव।
खेत नदी मन्दिर की घण्टी
बचपन मेला ख़्वाब सलोना मेरा गाँव।
सारी यादें कांच के टुकड़े
औऱ मेरा दिल नंगे पांव।

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19 AUG 2021 AT 17:43

एक लम्बी रात
और तुम्हारे सीने के
नर्म स्पर्श के साथ
गालों को सहलाती सांसों के बीच
मैं चाहता हूं मेरे सिराहने
तुम्हारा दाहिना हाथ।

एक दूसरे के आगोश में
छोड़ते भरते सांसों के बीच
बुनना चाहता हूं कुछ ख़्वाब
वो ख़्वाब हां हां वही ख़्वाब
जो मुश्किल लगे
अनवरत असीम असंभव
फिर भी सुकून भरा वो ख़्वाब
देखना चाहता हूं तुम्हारे साथ।

एक दूसरे के सामने लेटे हुए
निहारते अकिंचन तुम्हारी आंखों में
उसकी गहराई में ख़ुद को ढूंढते हुए
और खोते हुए
किसी और दुनिया में
इस जहां से परे
पूछना है वो कठिन सवाल
हां वही लाज़वाब सवाल
कि तुम मेरी हो ना?
बताओ
और तुम्हारी चुप्पी
आंखो में अजीब कश्मकश
बनावटी मुस्कुराहट के पीछे
मजबूरी छुपाते हुए
जैसे अभी ये बादल छिपा रहा
चांद को अपने पीछे
टालना सवाल को
देखना है ये तुम्हारी आंखो में छुपी
मजबूरी को
फिर मुस्कुराना है तुम्हारे साथ।

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1 MAR 2021 AT 0:32

वो बेबाक हँसी वो सुकून भरी शाम
जेहन में वो लम्हे आते जाते रहते हैं।
हमे ख़बर है दोबारा कभी नहीं आएंगे,
गए दिनों को हम बुलाते रहते हैं।।

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16 SEP 2020 AT 17:46

थोड़ा सा लिखा है माँ के लिए,
कि पूरा लिखा है माँ ने मुझे।।

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14 SEP 2020 AT 11:07

ऊँच नीच को नहीं मानती हमारी हिंदी,
इसमें कोई कैपिटल या स्माल लेटर नहीं होता।।

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9 SEP 2020 AT 14:28

या तो मूझे भी तू मुकम्मल चालाक बना दे।
या मासूम लोगों की कोई और दुनिया बसा दे।।
- भास्कर

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24 APR 2020 AT 15:09

वो ना अाई थी मुक्कमल अब ना जाती है मुकम्मल
मेरे इश्क का सुकून ए सफ़र मुसलसल नहीं होता
आजकल मैं कहीं और मशरूफ रहा करता हूं
कोई भी काम मुझसे मुक्कम्मल नहीं होता।

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