क्यों न करें हम भी सौदा उस रात का
जो तड़पाए रूह को तेरी पर लब न खुलें
आहट सुनना न गंवारा लगे टूटते जिगर की
नजरें महफ़िल में सभी की चुभती सी लगें
किया था सौदा तुमने जो मेरे जस्बात का
याद दिलाए लम्हा तुम्हें उस रात का
— % &-
वो खयाल था मेरा
या
था मेरी जिन्दगी
जो
तनहा छोड़ मुझे
यहां
तारों की महफ़िल में
खो
गया कहीं-
जेहन में रावण को रखना जिंदा
जिसमें पर नारी के लिए सम्मान
था ,तभी तो
सीता का मान जीवित रहा-
वक्त भी काला निकला मन से
दिखावटी खूबसूरती को कोहिनूर का
खिताब दे गया
-
दे रहा है दर्द वो मुझे बिखरने के लिए
हो रही हूं मैं मज़बूत जिंदगी से लड़ने के लिए
इस बात से है वो बेखबर कि
हैं इरादे मजबूत चलने को नए सफ़र के लिए-
गम के पलों में तलाशा तुम्हें
कई कई मर्तबा
तुम खुशियों के मोहताज़ थे
शायद! इसीलिए ही
मिलते ही अलविदा कह गए!!-
किसी को बनाना चाहता हूं
या! किसी का बनना चाहता हूं
इसी कश्मकश मे एक उम्र गुजार दी
और
अब तो परछाईं भी करने लगी
"किनारा" बेरंग शख्सियत से-
कोई बुलाता है
तनहाई में
झांक कर देखो
संबंधों की गहराई में
टूटता सा रिश्ता है शायद
पलकों की कोरो पर कहीं टिका हुआ
सा
-
दो ही रिश्ते हैं पनपते प्यार से
खून के रिश्ते और रिश्ते फर्ज़ के-