Bhargavi Awasthi   (Bhargavi A. (कवित्वन))
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Joined 28 August 2020


Joined 28 August 2020
5 SEP 2022 AT 19:54

तलाश में खुशी की
भटके हम, हुए गुम।
ज़माना बीत गया
ना सुकून मिला, ना तुम।

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1 SEP 2022 AT 23:40

समझती हूँ मैं सारे इशारे तुम्हारे
मगर बात शब्दों में कभी तो कहो न।
बैठ जाते हो हर दफ़ा बस मुझसे ही सुनने को
जज़्बात अपने भी सारे कभी खुल के कहो न।
साफ़ दिखता है आंखों में ये इश़्क जाना
इंतज़ारी में तू भी है हाँ मैंने माना,
मगर मौन और उलझनों में रहो न।
जो भी हो, जैसा भी हो साफ़-साफ़ कहो न।

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24 AUG 2022 AT 23:16

सौ उलझने अपने सर से उतार कर,
आशा के कजरे से आंखें संवार कर,
औरों की उल्फ़त को थोड़ा नकार कर,
निकल यायावर तू खुद से प्यार कर।

कर ले हिसाब अपने सब दुःखों का
खर्च कर के सारे दर्द, आँसुओं का,
तिल-तिल कमा कर पैसा सुखों का
ख़्वाबों का अपना पुल फिर तैयार कर।
निकल यायावर तू खुद से प्यार कर।

क़ैद न कर खुद को बीते मलालों में
फैला ले पर ऊँचे, नीले उजालों में,
जला कर दिया हौसले का खयालों में
तमसी दीवारों का हर दिन त्योहार कर।
निकल यायावर तू खुद से प्यार कर।

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17 AUG 2022 AT 19:15

साथ तेरे चलते हुए मैं ये अक्सर सोचा करती हूँ
तू थाम ले मेरा हाथ अचानक उस लम्हे मेरा क्या होगा?

उस लम्हे जब मेरे हाथ से तेरी उंगलियाँ टकराएंगी,
जब तेरे हाथ की रेखाएं मेरी से घुल-मिल जाएंगी,
जब सांसों में भारीपन सा और दिल में शोर भरा होगा,
उस लम्हे मेरा क्या होगा?

उस लम्हे जब बातूनी लब मौन बड़ा धर जाएंगे,
नैन हमारे बातों का जब ज़रिया एक बन जाएंगे,
जब साथ चलूँगी मैं तेरे, और वक्त ये ठहरा होगा,
उस लम्हे मेरा क्या होगा?

पर अगले पल जैसे ही तू हाथ छुड़ा घर जाएगा,
खुद को आधा भरा हुआ सा शायद ये मन पाएगा।
उस लम्हें जब इस बिछड़न से पूरा जिस्म डरा होगा,
उस लम्हे मेरा क्या होगा?

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5 AUG 2022 AT 3:25

टूटने में पूरी
थोड़ी सी ही हूँ बाकी,
फ़िर भी ठहरी हूँ मैं
इस आस में ताकि...

जो अचानक इस मौसम
लौट तुम आओ,
जाती जान मेरी, संग तुम्हारे
लौट ही आती।

पर, देखो! फ़िर न आए तुम-

बूँदें बरस रही हैं,
बरस रही याद तुम्हारी।
फ़िर सावन गुज़र रहा मेरा
करके तुम्हारी इंतेज़ारी।

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30 JAN 2022 AT 23:06

संगीत में क़ैद तस्वीर।
( *Read Caption* )— % &

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25 JAN 2022 AT 21:46

उस उषाकाल मेरे हृदय तार
जब उन नैंनों के भक्त हुए,
वो प्रथम और अंतिम झलक पे उसकी
हम अधीर, प्रेमासक्त हुए।

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7 JAN 2022 AT 23:35

अज्ञेय, यायावर, आर्द्र सा चरित्र
भीनी माटी, फूल जल-तरित
वात सुगन्धित,
सु-सुरम्य इत्र
अपने संग-संग लाया है।
कितना मधुर, मोहक, सुहावना
शरद में सावन आया है।

वर्णशून्य, बेरंग, मंद सा
पात-पात में अलग ढंग सा
रूप-रंग,
मन में उमंग
सकल निलय महकाया है।
कितना मधुर, मोहक, सुहावना
शरद में सावन आया है।

रोदन, विरह, वियोग खार का
हर्ष, उत्कर्ष,उत्सव बहार का
अल्प सार,
स्मृति मल्हार
नीरद ने सुरमई गाया है।
कितना मधुर, मोहक, सुहावना
शरद में सावन आया है।

- भार्गवी अवस्थी

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17 SEP 2021 AT 13:21

वो सुनहरी धूप से ठीक पहले की
नारंगी शांत सुबह की तरह,
जो सबके हिस्से आती है
पर मिल पाती है मेहरबानों को...
वही हो तुम!

वो सर चढ़े आफ़ताब में
छांव देती छत की तरह,
जिसकी हर ईंट कहती है
सुकून वाली बातों को...
वही हो तुम!

वो धुंधले आसमान में
छिपे हुए चांद की तरह,
जिसकी रोशनी सबसे प्यारी लगती है
एक चमक देती है अंधेरी आंखों को...
वही हो तुम!

वो मौसम के राग,
हवा के सुर सप्तक की तरह,
जिनकी अनजान ताल जगाती है
कई गहरे जज़्बातों को...
वही हो तुम!

-bhargavi_a.

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12 AUG 2021 AT 7:36

प्रेम!
कितना अन्यायपूर्ण है
इस संभ्रांत भाव को सरल कहना,
और उससे भी अधिक अनुचित है
इस बात को जानते हुए इसका उन्मूलन न कर पाना।

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