क़दमों की आहट, दिल में बेचैनी, आँखों में उदासी, ये बेख़ुदी सी रातें। यादों की छाँव में हों तन्हाई के गीत, दिल में बेचैनी, और मोहब्बत की बातें। हर शाम की तारीक़ में हो सुबह का सवेरा, ख्वाबों की धुँध में हो अपनी मुलाक़ातें। बीते हुए लम्हों के फूलों की ख़ुशबू, मोहब्बत की राहों को हैं महकातें।।
हमने रातें गुजारी हैं चांद तारों के साथ, हम दावे से कहते हैं, तेरे मुखड़े में उन से ज्यादा नूर है। पढ़ता पहले भी था मैं नज़मे, ग़ज़ले और ये हसीन चेहरे, आज जो हमारा एक मतला ग़ज़ल हुआ है तो इसमें सिर्फ़ तेरा कसूर है।। नहीं, तू नहीं जानती कि मेरा दिल कितने पास है तेरे, और कितना तू मेरी आँखों से दूर है। एक दफ़ा बस तेरी आँखों को पढ़ गया था, पड़ गए फिर मोहब्बत में, सब तेरी आँखों का कसूर है।।
ज़िंदगी को कुछ इस कदर गुज़ारता हूँ मैं, ख़ामोश आँखों में उसी का अक्स उभारता हूँ मैं। तकता हूँ राह उसके लौट के चले आने की, वो भी तो कोई वजह नहीं छोड़ता मुझे सताने की।।
बे-तकल्लुफ़ होकर, तुम जब कभी भी मिला करो, पहलू में यूं आकर हंस कर हमसे गिला करो। डर कर ख्वाबों से यूं, नींद ना आँखों से जुदा करो, अपनी कैफ़ियत यूं सरेआम ना ग़ुमशुदा करो।।
सोचता हूं अक्सर, जब भी तन्हाई में बैठा होता हूं, कि अब मैं तुम्हारी मौजूदगी के बारे में क्या कहूं... कि तुम एक आस हो, मेरी आंखों में बसे समंदर की, कभी ना बुझने वाली प्यास हो! तुम मेरा हिस्सा हो, मैं एक आधी अधूरी कहानी हूं, और तुम मेरी ही कहानी का मुकम्मल किस्सा हो!!
अब अपने बारे में क्या कहूँ, किस्सा हूँ, कहानी हूँ या कोई हसीं फ़साना हूँ, यूँ ही पढ़ गुज़रने का मैं इक दिलकश बहाना हूँ। धूप हूँ, छाँव हूँ या काली लम्बी इक रात हूँ, किसी के दिल मे दफन कोई अनकही चुभती सी बात हूँ।।