ख्याल एक आदत बना है।
इस ख्याल में मैं तुम्हारे साथ हूं।
मैं अब साथ वाले कमरे में रहता हूं
रोज सुबह जागते ही तुम्हें सोते हुए देख कर
निकल जाता हूं मार्निंग वॉक पर...जैसे धुप रोज देखती
फूलों को कभी नदियों को,पहाड़ पर पेड़ों को
देख कर निकल जाती हैं क्षितिज पर।
सुबह शाम आते जाते हम मुस्कराते हैं कुछ रुककर आंखों से बतियाते हैं इक दुजे के कुछ दुख,कुछ एक खुशियां तुम को कई बार सुरज सा, व्यस्त देखते हैं कभी कभी सुबह में।
तब मन होता है कि अब यह ख्याल यही रुक जाएं। तुम थक गई हो।
आज का जो ख्याल है यह हकीकत से ज्यादा
खुबसूरत हो है यह अनोखा भी,अनदेखा ही
कल के दिन की जिम्मेदारी और अपनी भागीदारी ने तुम्हें बहुत थका दिया है।
अभी तक सोयी हो आज की सुबह
मैं लौट आया हूं घूम कर ..
तुम्हारे कमरे की ओर देखता रुक जाता हूं।
और तुमसे कहे बग़ैर अपनी रसोईघर से बना लाता हूं तुम्हारे लिए भी एक कॉफी...
और रख आता हूं तुम्हारे सिरहाने की डेस्क पर।
फिर आ अपनी रसोईघर में गिराता हूं
कुछ बर्तन.....और झांकता हूं बार बार तुम्हारे कमरें में, मैं देखना चाहता हूं आज जागते,
चौंकते, कॉफी मग को उठा कर इधर उधर देखते।मैं यह सब देखना चाहता हूं अपनें ख्याल में ही हर दम तुम्हें रोज कॉफी का घुट भरते,अपने एक हाथ से वालों को सम्हालते
और मुस्कराते।
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