सादगी भरी जीवन
बनावटी जीवन से भिन्न,
उद्यान और वन जैसा
अंतर,उद्यान तो उद्यान,
केवल पेड़-पौधे-फूल
की शोभा निराली है।
और कहां वन,पहाड़,पर्वत,नदी,
सुगंधित मादक फूल नैसर्गिक
शोभा चार चांद लगाती धरा में ।
इतना अनुपम,अनोखी,
अद्भुत निहारी न्यारी शोभा।
आसमान,जमीन का फर्क ,
बनावटी और नैसर्गिक में।
तन-मन-मस्तिष्क सबको पसंद।
क्योंकि लगती बहुत आकर्षक,
मनोहरी,सादगी की खुशी ,
उमंग,तरंग बाहर झलक उसकी।
कर लेती सबकी मन हरण।
साथ में विचार उच्च,संस्कारी
हो तो सब फिदा,लट्टू उसमें।
कालिदास विरचित अभिज्ञान
शकुंतलम की वन कन्या शकुंतला
अपने नैसर्गिक रूप लावण्य से
उद्यान कन्या को भी दे रही थी मात।
इतना रूप सौंदर्य उस सादगी में
निहित,अब समझ में आई मुझे,
इस विषय में कविता लिखने बाद।
पढ़ने के समय केवल पढ़ाई कर।
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