हैं फागुन के रंग चढ़े कुछ
नीले, पीले, काले, लाल।
चेहरे पर बिखरी लट भीगीं
हाथ हिना और गाल गुलाल।।
गंध हवाओं में बिखरी
और रंगों के बादल छाये।
कुछ घुँघरू खनके, प्रश्न उठे
और नयनों से उत्तर आये।।
मोहक मधुमय है ऋतु वसंत
कण-कण में फैला रंग अलग।
कुछ चेहरों पे असली रंग हैं
कुछ चेहरों पे हैं रंग अलग।।
लाल, गुलाबी, पीत - परागी
धूप रंगीली छाई है।
शुभ-शुभ हो सबको हर्ष पर्व
मतवाली होली आई है।।-
earth, I'm also one of a kind.
# Writing is... read more
पास जब वो था तो, मसहला कोई ऐसा न था
अब ये आलम है कि, दिल कहीं लगता नहीं।
हमनवा, हमदर्द देखे, चाह और हमराह भी
सारी दुनिया देख ली, लेकिन कोई तुझ सा नहीं।
फकत कुछ लम्हे थे, घर में रोशनी होने को थी
चांद निकला था, अगर बादल में वो छिपता नहीं।
गर्दिशों के दौर हों, या पुर - सुकूं हालात भी
वक्त की आदत है ये, कैसा भी हो रुकता नहीं।
जिंदगी का फ़लसफ़ा, मिलते बिछड़ जाते हैं लोग
जिससे दिल मिलता है 'भानु' वो कभी मिलता नहीं।-
ये अजब है मिज़ाज मौसम का,
कहीं पे धूप नसीब नहीं होती-
कहीं लोग छाँव को तरसते हैं।।
यूँ ही बारिश नहीं हुआ करती,
पहले इक हूक सी निकलती है-
फिर ये बादल कहीं बरसते हैं।।-
वो तल्खियां भी हों,
गम भी और कशिश भी।
जब तक भी जां रहे,
आरजू "वही" रहे••••
बारिश में, खुश्बुओं में,
फूलों में, चमन में भी।
ख्वाबों में, ख्वाहिशों में
हरसू "वही" रहे••••-
ये भी सच है कि सर-ए-राह बहक जाते हैं
राह गैरों को, खुद राह बताने वाले•••
ये अजीब रंग हैं जो पल भर मे उतर जाते है
हम ने देखे है कई रंग जमाने वाले•••
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बेरंग जिंदगी में रंगों की बरसातें••
सुनहरी धूप, आसान रास्ते,
सुखद दिन और सुकून भरी रातें••
बादलों से निकलता चाँद,
धीरे-धीरे छंटता हुआ अंधेरा••
उन्मादी सोच में डूबे हुए लम्हे
अंतरमन में उभरता एक चेहरा••
ख़यालों में उतरते नये सपने।
बरसते मौसम, बहते झरने।
आँखों की सहज खामोशी,
पायलों की खन - खन••
खुश्बुओं के झौंके, और चंचल मन••
अधरों पर फैली मनमोहक मुस्कान।
सतत प्रेम - विश्वास,
रिश्तों की पहचान।
जीवन की मधुर मिठास••
हर दिन नया अहसास,
तुम हो बिल्कुल खास,
हाँ! सबसे खास••••-
सर्द सुबह के आलिंगन में. सृजन सुखद अनुभूति के पल,
नये दिवस ने आँखें खोलीं। हों अनवरत लिए नव हर्ष।
फूलों पर सूरज की किरणें नव उमंग, नूतन तरंगमय
उतरीं करती हँसी-ठिठोली। हो प्रफुल्लित जीवन उत्कर्ष।
नये स्वप्न नव आशाओं के, सहज सोच की उत्तमता में
नव निर्मित सुविचार लिये••• अति उत्तम संस्कार लिए•••
नववर्ष तुम्हारा स्वागत है! नववर्ष तुम्हारा स्वागत है!
खुल जायें सारे बंद पृष्ठ मिल जाये उनको सर्वोत्तम
जो बिना पढ़े ही छूट गये। अवसर जिनको बेहतर न मिले।
हो जाये उनसे हृदय-मिलन न हों जीवन में कठिन प्रश्न
जो, जाने-अनजाने रूठ गये। जिनके अब तक उत्तर न मिले।
रिश्तों की सरल मधुरता में नयी चाह और नयी राह में
कोमल, निश्छल व्यवहार लिए••• बिन अड़चन रफ्तार लिए•••
नववर्ष तुम्हारा स्वागत है! नववर्ष तुम्हारा स्वागत है!
बहती मृदु जीवन-धारा में
शीतल, सुखमय, अविरत लय हो।
हों सरल, सहजता लिए शब्द
मुख दरपन, वाणी मधुमय हो।
नव उन्नति, नव कीर्ति, प्रगति नव
सर्वसुलभ उपहार लिए•••
नववर्ष तुम्हारा स्वागत है!-
साफ-सुथरे मकां तो हैं, पर कुछ बाकी है..
दिल से नफरत के कचरे को हटायें, आओ।
अँधेरा ही अँधेरा दूर तक फैला हुआ है..
कोने-कोने में चलो दीप जलायें, आओ।
हो सके तो बाँट ले उदासियाँ सबकी..
किसी रोते हुये चेहरे को हँसायें, आओ।
जिंदगी भर यूँ तो भागम-भाग रहती है..
कुछ समय अपने लोगों में बितायें, आओ।
प्यार-सदभाव से बनते हैं गैर भी अपने..
दिल में पनपे हुये मतभेद भुलायें, आओ।
सबको शुभ हो, सुखद हो दिवाली 'भानु'..
साथ मिलकर दीप-उत्सव मनायें, आओ।-
कोई लहरों में सफर करता है,
मुकद्दर है।
किसी को इक लहर-
साहिल पे डुबो जाती है ••••
धूप में रखता हूँ खयालों को-
सुखाने के लिये।
और ये बारिश है कि-
हर रोज भिगो जाती है••••-
पर विहंगों के खुले, बादल झरे.... मेघ का गर्जन लिये, विचलित किये
सुप्त से खामोश तरु लहरा उठे.... दूर तक फैले हुए हैं धुँधलके....
ताप में लिपटी हुई टप्प से गिरती हुई बूंदों की
धूप जो छिटकी हुई थी। थपकी से मचलते बुलबुले....
दूर तक दिखती नहीं नृत्य करते सहजता से बह चले....
अब कहीं छिप सी गई है••• कल धरा ने वस्त्र कुछ
कल तलक जो शुष्क थी और ही पहने हुए थे।
बहती पवन। आज की पोशाक तो
आज शीतलता लिये, बिलकुल नयी है•••
बरसात में भीगी हुई है•••
फिर मिलन के सुर छिड़े थिरके कदम।
सरसराते पात हर्षित गात में नाच उठ्ठा है मयूरा मुग्ध मन से....
खुशियाँ समेटे हैं तने.... और पपीहे की पीहु ने भी वही
रंग पतझड़ के हुए आये-गये प्रेम का छेड़ा है अपना राग फिर से....
धूप के साये हुए हैं अनमने.... फिर सुनहरी याद के मोती समेटे,
कूक कोयल की मधुर खुशबुओं के साथ लौटी है
संगीत सी बजती हुई। हवा छूकर वदन से....
सनसनाती इन हवाओं में प्रकृति के सब रंग बिखरे, रूप निखरे
कहीं रम सी गयी है••• हर तरफ अदभुत छटा बिखरी हुयी है•••-