Bhanu Chauhan   (BPS Chauhan)
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Saturated with life
Joined 12 September 2019


Saturated with life
Joined 12 September 2019
17 DEC 2023 AT 22:57

हम वही है जो हम नही है
भाव जो कभी मूर्त नहीं हुए
शब्द जो कभी कहे नही गए
जीने की व्यथा में डूबे हुए स्वर
जो ध्वनित नहीं हो पाए,
राग नहीं बने
जीवन के अचिन्हे सीमांत के
चरम क्षण होने न होने के
अपनी अनंतता में ठहरे रहे।
निरंतर अपनी अतीन्द्रिय संपूर्णता में जीते
रहे,
पर बीते नहीं भोगे नही गए
आकार रूपहीन आघात जो बस , सहे ही गए
अनजाने अनचाहे आंखों की कोरों में
उमड़े हुए आंसू से अनदीखे अटके ही रहे झड़े नहीं

वही है हम, जो नहीं है

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9 JAN 2023 AT 0:01

चेहरे गिर गए हैं,
लो ये आपका
ये आपका
इन्हें लगाकर चलिए।

गिरे हुए मासूम चेहरे
माथे पे सिलवटें लिए
बेचारगी ये थकावट
ये बेहोशी
ये हताश चेहरे

देखो मैंने इनपर
मुस्कान सजाई है
पहनकर देखो
पहन लो
अरे पहन ही लो
क्या? नहीं पहचाना
अरे आप ही का है।

मुस्कुराइए आपके पास
आपका खुद का चेहरा है।

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3 DEC 2022 AT 14:14

समझे जा सकने वाले शब्दों का चयन सीमित करता है,
लिखने वाले की चेतना को।
निःशब्दता के उन आयामों तक
जो कभी समझे जा सकेंगे शायद,
मैं लिखता✍️ रहूंगा।

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15 JUL 2022 AT 0:05

मशरूफ हैं अपने अंदाज में
समंदर की जो लहरें हैं।
परखना इतना आसान नहीं
चेहरों के भी चेहरे हैं।।
— % &

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15 JUN 2022 AT 8:59

एक फूल की मर्जी थी खिले रहने की
अपनी जीवंतता की धुन अपनी मस्ती की
तुमने उसे तोड़ा उसकी मर्जी के बगैर
चढ़ा दिया किसी नवयुगल के हार में
किसी मृत के अंतिम संस्कार में
बिना जाने कि वो बस खिले रहना चाहता था
नही पता उसे पसंद है उस पर कविता लिखे जाना
पर वो नहीं चाहता नेताओं के गले का हार हो जाना
खैर तुम क्यूं समझोगे,
तुम्हे तुम्हारे होने का ढंग समझ नही आया।
फूल हो या जीवन , तुमने बस व्यर्थ ही गंवाया।।

— % &

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19 APR 2022 AT 15:30

रेगिस्तान के ऊंट के जैसी है जवानी
थकती रुकती चलती, पानी की तलाश में — % &

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15 MAR 2022 AT 11:04

दिल मजदूर है

वो पैसे कमाता है।

थोड़े से, जरूरत भर— % &

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19 DEC 2021 AT 10:07

सच के कितने करीब हैं,
शमशान के किनारे वाले लोग
मगर अफसोस
वो दूर हैं बहुत, अभी सच से।

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19 DEC 2021 AT 9:53

मैं हारते हारते सबकुछ एक दिन जीत गया,
मैं अगर जीता न होता, तो जीत गया होता।।

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4 DEC 2021 AT 23:19

दर्द का सीना चीरते ये शब्द
तुम्हारे जख्मों पर मरहम हैं।

मैं सोचता हूं कि लिखूं दो और
फिर सोचता हूं,
कहां इतनी फुरसत है?

तुम्हें ये फिर भी सालता रहेगा
हर चुम्बक का दूसरा ध्रुव है।

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