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"मुझे तुमसे इश्क़ है"
मुझे तुमसे इश्क़ है,
बस यूँ समझ लो-
जैसे साँसों को हवा से रिश्ता हो,
जैसे रातों को चाँदनी से।
ना कोई वजह, ना कोई सवाल,
बस एक खामोश एहसास है-
कि तुझमें ही मेरी रूह की आवाज़ है।
तेरी मुस्कान से दिन निकलते हैं,
तेरे नाम से शाम ढलती है।
और जब तू दूर होता है -
तो हर घड़ी एक सदी सी लगती है।
मुझे तुमसे इश्क़ है,
इसलिए नहीं कि तू सबसे अलग है,
बल्कि इसलिए...
क्योंकि तू मेरा हिस्सा है-
जिसे मैं हर पल जीती हूँ,
बिना जताए... बिना माँगे।-
जिसने बारीकी से जानने की कोशिश की है उसने,
मुझे नहीं मेरे व्यवहार को सराहा है
सराहा है मेरे शरीर का व्यक्तितव को नहीं,
मेरी बौधिकता, मेरी अभिव्यक्ति को सराहा है।
या यूँ कहूँ...
या यूँ कहूँ उनलोगो ने मेरी नहीं,
मेरे माँ - पिता की सराहना की है।
आख़िर,
ये सबकुछ उनसे ही तो पाया है।
कैसे विनम्रता से बातें करना,
गलत चीजों पर बेझिझक सवाल उठाना,
और गलत को गलत अंजाम देना
ये हिम्मत उनसे ही तो पाया है
और हाँ,
और हाँ, जब लोग मेरी सराहना करते है तो ,
हृदय उत्साह से भर जाता है
ऐसा लगता है जैसे वो मेरे माँ -पिता कि
सराहना कर रहे है!-
तुम जब मेरी लिखावट पढ़ो तो,
शब्दों को नहीं भावनाओं को पढ़ना!
तुम पढ़ना मेरा प्यार नहीं,
मेरे इश्क़ को पढ़ना!
तुम पढ़ना ढेर सारी भाव लिये,
जिसको मैंने अपनी भावनाओ से,
पिरोया है सिर्फ़ तुम्हारे लिये!
तुम पढ़ना नयनों को मुंद करके,
इस रूहानी प्रेम को जिसको मैंने,
हृदय के हर खंड में सजोयाँ है!
तुम जब मेरी लिखावट पढ़ो तो,
शब्दों को नहीं भावनाओं को पढ़ना!-
याद आते हो हर रोज
फ़कत तुम्हें आवाज़ नहीं दे पाती
लिखती हूँ गज़लों में तुम्हें हर रोज
फ़कत उनमें तुम्हारा नाम नहीं लिख पाती
गुजरती हूंँ उन गलियों से तेरी सोहबत में
फ़कत तेरे साये में नजर नहीं आ पाती
करती हूंँ इश्क तुझसे आज भी
फ़कत अब वो इश्क तुझे जता नहीं पाती-
इत्तेफाक कहूं या किस्मत समझूँ, खुद से यह सवाल है
तेरा यूँ मेरी जिंदगी में आना कमाल है।
हसरत है एक दफ़ा दीदार करने की लेकिन,
बातों से ही प्रेम का रस उड़ेलना कमाल है।
हज़ारों ख़्वाहिशों के साथ नयनों को मुंदना, और...
फ़िर दिल - ए- आँखों उतर आना कमाल है।
चंद लम्हों में ना जाने कितने सवाल दिलों में पनपना,
उन सब को भुला मोहब्बत में पड़ना कमाल है।-
गर हो सके तुमसे...
गर हो सके तुमसे...
तो अब इतना ज़रूर करना...
मेरे जीवन में शम्मा जला...
अँधियारों को मिटाना...!!-
अच्छा लगता है
इश्क़ है ना मोहब्बत है, ना चाह है तुझे पाने की
फ़िर भी करीब रहे तु अच्छा लगता है।
ख़्वाब है ना हकीकत है, है दोनों में दरमियाँ
फ़िर भी तुम्हें सोचना अच्छा लगता है।
दूर हो ना करीब हो मेरे "ख़सम"
फ़िर भी तु हमदम हो अच्छा लगता है।
पराया है ना तु ना ही है अपना
जाने कौन है तु, क्या है....ये बावला मन मेरा....
अब जो कुछ भी है
फ़िर भी तेरे साथ अच्छा लगता है।-
देखा है लोग रिश्तों को बचाने के लिए
किसी भी हद तक गुज़र जाते है
महज़,
खेद तुमसे इतनी सी है की...तुमने एक कोशिश भी नहीं की...!!!!-
अनेको सवाल उठते थे मन मे
व्याकुल सी होती थी..
जब तुमसे दूर थी
और देखो आज
ख़ामोश सी मैं,
सागर के नीर सा
प्रवाह शांत मन मेरा...
ना सवाल ना शिकायत
शायद इसलिए की समीप हो तुम मेरे...!!!-