शीश झुकाकर माटी को मैं अर्पण करता हूँ नमन मेरा,
हर कतरा खुन का न्यौछावर हो माँ मैं ऐसा बनु श्रवण तेरा।
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कह नहीं पाता इसलिए बयां करता हूँ अपनी कलम स... read more
तुम एक खुबसूरत
गुलाब जैसी हो,
निन्द में मुस्कूराऊं
वैसी ख्वाब जैसी हो,
तुझे बस देखभर लेने से
नशा हो जाए
सर से पांव तक कम्बख्त़
शराब जैसी हो|-
हँसा करता था कभी इन शांत रातों पर
यह कहकर कि तू अकेला बहोत है,
आज "क्या हुआ,तू सोया नहीं अब तक"
यह सुनकर इनसे मैं शर्मिन्दा बहुत हूँ।
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पिघलाकर आँखों के काजल को
मिरे आसमां पर गिराया न कर,
मुझे आदत हो गई है "चाँद" की
यूँ हर वक्त सम्मुख आया न कर।-
Jise tasveer m dekha tha maine
Wo aaj mere har tahreer m dikhti h-
तेरी तस्वीर तो छुपा के रक्खी है मैंनें,
शायद लोगों ने तुझे मेरे तहरीर से देखा होगा।-
अपने नारंगी बिन्दी से पहले मेरे सुबह को शाम कर गई,
फिर जुल्फ़ें बिखराकर आसमां में दिन को रात कर गई।-
वो आखिरी वस्ल में लिपटकर
अपने आब-ए-चश्म से मिरे कांधे भिगाती है,
कुछ इस तरह वो हिज्र अब्सारों से
आखिरी दफा अलविदा कह जाती है।-
इज़्तिराब आँखों का लाजमी है,
वो खुद को इनकी आदत बनाकर
न जाने कहाँ छिप गए?-