Bhagwat Kumar   (भागवत कुमार)
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Joined 9 March 2018


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Joined 9 March 2018
15 JAN 2023 AT 14:39

शीश झुकाकर माटी को मैं अर्पण करता हूँ नमन मेरा,
हर कतरा खुन का न्यौछावर हो माँ मैं ऐसा बनु श्रवण तेरा।

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31 DEC 2022 AT 8:50

तुम एक खुबसूरत
गुलाब जैसी हो,

निन्द में मुस्कूराऊं
वैसी ख्वाब जैसी हो,

तुझे बस देखभर लेने से
नशा हो जाए

सर से पांव तक कम्बख्त़
शराब जैसी हो|

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26 NOV 2022 AT 18:40

हँसा करता था कभी इन शांत रातों पर
यह कहकर कि तू अकेला बहोत है,

आज "क्या हुआ,तू सोया नहीं अब तक"
यह सुनकर इनसे मैं शर्मिन्दा बहुत हूँ।

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11 JUN 2020 AT 22:04

पिघलाकर आँखों के काजल को
मिरे आसमां पर गिराया न कर,
मुझे आदत हो गई है "चाँद" की
यूँ हर वक्त सम्मुख आया न कर।

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11 JUN 2020 AT 0:31

Jise tasveer m dekha tha maine
Wo aaj mere har tahreer m dikhti h

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11 JUN 2020 AT 0:19

तेरी तस्वीर तो छुपा के रक्खी है मैंनें,
शायद लोगों ने तुझे मेरे तहरीर से देखा होगा।

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9 JUN 2020 AT 23:14

उसके होठों का रंग
गुलाब पर गिरा और लाल कर गया।

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9 JUN 2020 AT 23:00

अपने नारंगी बिन्दी से पहले मेरे सुबह को शाम कर गई,
फिर जुल्फ़ें बिखराकर आसमां में दिन को रात कर गई।

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9 JUN 2020 AT 22:05

वो आखिरी वस्ल में लिपटकर
अपने आब-ए-चश्म से मिरे कांधे भिगाती है,
कुछ इस तरह वो हिज्र अब्सारों से
आखिरी दफा अलविदा कह जाती है।

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31 MAY 2020 AT 21:24

इज़्तिराब आँखों का लाजमी है,
वो खुद को इनकी आदत बनाकर
न जाने कहाँ छिप गए?

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