परमात्मा को जीवात्मा की दृष्टि में सही नहीं होना है, बल्कि जीवात्मा को परमात्मा की दृष्टि में सही होना है। इसी मार्ग को धर्म कहते हैं, जिस पर चलकर जीवात्मा परमात्मा स्वरूप हो सकती है।
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🌟 Self-Realisation & Param Ātmabodh
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तकनीक केवल हमारे दुखों को अनुभव करने का मंच बदलती है, उन्हें मिटा नहीं सकती। जब तक मन तुलना और प्रतिस्पर्धा में उलझा रहेगा, दुख बना रहेगा। सच्चा सुख बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि आत्म-जागरूकता और अपने भीतर लौटने से मिलता है, जहाँ शांति और संतोष स्वतः प्रकट होता है।
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भीड़ कभी सत्य का प्रमाण नहीं होती ।यदि ऐसा होता तो कौरवों की विशाल सेना श्री कृष्ण के विरुद्ध न खड़ी होती ।
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Truth will not shrink to fit your mindset; you must expand your mindset to realize it.
सत्य तुम्हारी मानसिकता में सिमटेगा नहीं; उसे समझने के लिए तुम्हें अपनी मानसिकता का विस्तार करना होगा।-
Opposition is not a setback, it’s evidence of progress.
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जिस प्रकार पर्वत के शिखर तक पहुँचने में शिखर से जुड़ी रस्सी सहायक बन जाती है, जिसे पकड़कर साधक शिखर तक पहुँच सकता है, उसी प्रकार परमात्मा तक पहुँचने में गुरु सहायक बन जाते हैं, जिनका सहारा लेकर साधक परमात्मा तक पहुँच सकता है।
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ज़िंदगी अंधेरी रात में टोर्च लेकर चलने जैसी है ।
पूरा रास्ता कभी एक साथ नहीं दिखता,
बस जितनी दूर तक टोर्च की रोशनी होती है उतना ही नज़र आता है,
और जैसे-जैसे कदम बढ़ते हैं,
रास्ता खुद साफ़ होता जाता है।-
Success is not measured by the applause of others,
But by the resistance you face when you rise above them.”-
दुनिया की कोई भी वस्तु मनुष्य को संतुष्ट नहीं कर सकती, सिवाय उसकी समझ के।
समझ के बिना प्राप्त भी अपर्याप्त प्रतीत होता है;
समझ से ही यह बोध होता है — ‘जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है।’
और यह अमूल्य समझ केवल सत्संग से ही मिलती है।-
मनुष्य को जो भी मिलता है, उससे वह असंतुष्ट ही रहता है;
क्योंकि संतुष्टि समझ से मिलती है, और समझ सत्संग से।”-