भारतम् संस्कृतम्   ("रसो वै सः")
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संस्कृतम् भारतम्
Joined 14 February 2021


संस्कृतम् भारतम्
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Paid Content

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भारत भर्ता
भारत कर्ता
पोषणदाता
जीवनदाता
...

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शोभनाशोभनत्वञ्च
चोत्तमं वाप्यनुत्तमम् ।
फलात्तु बुध्यते नैव
सदुद्देश्येन कर्मणः ॥
💐💐🪴💐💐
अच्छा काम वह नहीं,
जिसका परिणाम अच्छा हो ।
अच्छा काम वह है,
जिसका उद्देश्य अच्छा हो ॥
💐💐🪴💐💐
तथास्तु संस्कृत संस्थानम्
महेन्द्रगढम् , हरियाणा

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गर्मी के मौसम में
आवश्यकतानुसार
नीम्बूपानी का
सेवन करें ।

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Life without Prāņa
Life without You !
My life is a Paradise
With You 😊
It's very true !

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ऐसा रंग लगा रंगरेज
रंगीं ये जीवन हो जाए ।
रंगों की दुनिया में अपना
तन मन सब पावन हो जाए ।।
🏵🌹🌺🌻🌼🌸💐💮

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सपनों की रानी के सपने पानी से कल कल बहते हैं ।
मार उडारी मेघों के संग छलक छलक झरते रहते हैं ॥
जब डोले नैनों की कश्ती घबराहट सी हो जाती है ।
शान्तानल में हलचल थामें पलक मूंद तब सो जाती है ॥
जब अपनों के सपने देखें सपनों में अपने न पाए
सब सपनों के अपनेपन को हृदयभूमि में बो जाती है ॥
वर्षसहस्रों की यादों को क्षणिक समझकर चलने वाली
क्षणभर में वर्षों का बोझा फूल समझकर ढो जाती है ॥
यदा कदा ही नहीं सर्वदा सोने में सोना चमकाती
कनककंकणों के झंकृतरव कुण्डल के सम पो जाती है ॥
धुंध उठी मनवा के नीरद कास रहे कुछ चाँद सितारे
मध्य मोतियों के माला सी सूतसूत्र सी खो जाती है ॥
दीपदान में दान दीप कर दिगदिगन्त को दीपित करके
दीप धुँआ सा धुँआ दीप सा यदा दीप की लो जाती है ॥
धन दौलत की बंधी गठरिया गठरी की गांठें सुलझाने
सबको सबसे सबरंग करके नई सुबह फिर हो जाती है ॥
#रसो
#प्रातःवेला

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युवदिवसः
💐🚩💐

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सपनों की रानी के सपने पानी से कल कल बहते हैं ।
मार उडारी मेघों के संग छलक छलक झरते रहते हैं ॥
जब डोले नैनों की कश्ती घबराहट सी हो जाती है ।
शान्तानल में हलचल थामें पलक मूंद तब सो जाती है ॥
जब अपनों के सपने देखें सपनों में अपने न पाए
सब सपनों के अपनेपन को हृदयभूमि में बो जाती है ॥
वर्षसहस्रों की यादों को क्षणिक समझकर चलने वाली
क्षणभर में वर्षों का बोझा फूल समझकर ढो जाती है ॥
यदा कदा ही नहीं सर्वदा सोने में सोना चमकाती
कनककंकणों के झंकृतरव कुण्डल के सम पो जाती है ॥
धुंध उठी मनवा के नीरद कास रहे कुछ चाँद सितारे
मध्य मोतियों के माला सी सूतसूत्र सी खो जाती है ॥
दीपदान में दान दीप कर दिगदिगन्त को दीपित करके
दीप धुँआ सा धुँआ दीप सा यदा दीप की लो जाती है ॥
धन दौलत की बंधी गठरिया गठरी की गांठें सुलझाने
सबको सबसे सबरंग करके नई सुबह फिर हो जाती है ॥
#रसो
#हिन्दीदिवसस्य_शुभेच्छाः

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पत्नयः कदापि पत्युः पूर्वं
भोजनं न कुर्वन्ति 😌
कारणम् -
वैज्ञानिकाः कदापि रसायनं
निर्मान्ति चेत् सर्वप्रथमं वानरेषु
मूषकेषु च परीक्षणं कुर्वन्ति ।
😁😆😅

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