Berojgar ghalib  
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An avid reader and amateur writer endeavouring to unchain the shackle of ordinarity...
Joined 14 November 2018


An avid reader and amateur writer endeavouring to unchain the shackle of ordinarity...
Joined 14 November 2018
1 FEB 2022 AT 20:10


वो निकलते चांद सी...
मैं ढलता सूरज सा...
हम जहां भी मिले...
बस शाम हो गई!!

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3 JAN 2021 AT 19:38

प्रेम में जब मैं डूबा तो आग बन गया।
प्रेम को जब मैं समझा तो बैराग बन गया।।

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3 JAN 2021 AT 19:31

कड़क सर्द दोपहरी में, गर्म चाय सी तुम।
तेज कडकती धूप मे, नर्म छाई सी तुम।।

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18 NOV 2020 AT 13:27

उनसे जो मांगा कुछ समय
वो घड़ी थमाकर चल दिए
उनकी इसी मासूमियत पर
शायद इश्क़ हो रहा है हमें..

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4 NOV 2020 AT 21:10

लिखो मगर सुनाओ नहीं,
दिल में लगी आग को भड़काओ नहीं,
जो छिपा है ओट में दिखाओ नहीं,
समझो सब मगर जतलाओ नहीं,
लिखो मगर सुनाओ नहीं।।




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24 OCT 2020 AT 21:30

सुलझा, सच्चा, बेखौफ और बेबाक हूं मैं।
शायद दुनियां के पैमाने में.... थोड़ा खराब हूं मैं।।

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28 SEP 2020 AT 21:21

बाद... मुद्दत के ये पल आया
आज से मिलने फिर कल आया
दिल चाहा वक्त के साथ कर ले कुछ गुफ्तगू
फिर भी आवारगी संभालते मैं, बच निकल आया||

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19 SEP 2020 AT 19:31

रात बाकी है शाम को ढल जाने दो,
आज जाओ ठहर के सुबह हो जाने दो,

रहने दो झुल्फे उलझी मुझे दुनिया भुलाने दो,

एक ख़्वाब पल रहा है सीने में कहीं
हकीकत उसे कर जाने दो,

एक नज़्म है दास्तां अपनी
उसे ग़ज़ल आज बनं जाने दो,

रात बाकी है शाम को ढल जाने दो,
आज जाओ ठहर के सुबह हो जाने दो,



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29 AUG 2020 AT 22:40

कुदरत भी कुछ यूं छलने लगी।
बरसा पानी आसमान से और सारी ज़मीन जलने लगी।

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24 AUG 2020 AT 1:13

मेरे महबूब कभी तरसो के तुम भी।
तन्हा अंधेरी रातों में बरसोगे तुम भी।

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