!!!ये कमवक्त नींद """
ऐसे इंसान का जिंदगी में होना किसी दुआ से कम नंही;
जो आपकी मुस्कुराहट के पीछे छुपे मातम को पहचान ले,
आपकी हसीं के पीछे छुपी हकीकत को जान ले,
आपके गुस्से के पीछे छुपी घुटन को पहचान ले,
आपकी मायूसी के पीछे की मंसूबों को जान ले,
एकआपके दर्द को वो दवा की तरह पिजाए,
आपके श्रृंगार पर नहीं, आपकी सादगी पर मरजाये;
जिसे बताए बिना ही वो सब जान ले,
ये न पूछे की हुआ क्या है... बस यही बोले दे की मैं हूं ना...
और लिखने जाऊं तो श्याही कम पड जाए...
जो इन ख्वाबों को हकीकत की जगह देना चाहूं
तो कमवक्त नींद ही टूट जाए......-
पहले हिजाब, फिर किताब! का नारा लगानेवालों सारे लोग खास कर विद्यार्थियों को मेरा छोटा सा निवेदन है, क्रियपा इस बेबुनियाद सवाल पीछे अपना मूल्यवान समय नष्ट ना करे,
क्योंकि दोनों ही अपनी अपनी जगह सही है, अपने धर्म,जाती या मजहब का सम्मान या उसकी रक्षा करना गुनाह नही है, पर इसका मतलब ये नहीं कि हर जगह, हर चीजों को हम मजहबी तराजू में तोले!!शिक्षा और उससे सम्बंदित सारे अनुष्ठान किसी भी धर्म, जाती, या मजहबी दायरे में नहीं आते ... ये उसने बहुत ऊपर है... इसलिए आपसी भेदभाव न करते हुए हर शिक्षानुष्ठानों के स्वतन्त्र निर्धारित पोशाक होते है, और कुछ नियम कानून भी,,, और हम यहाँ पहले एक विद्यार्थी है और उसका पहला धर्म है नियम कानून का पालन करना... और ज्ञान ग्रहण करना नाकि उस ज्ञान को गुंडागर्दी में रूपांतरित कर मजहब के नाम पर खुद का तथा दूसरों का किमती वक़्त जाया करना। क्योंकि हम ही हमारे देश के भबिष्य है और बर्तमान भी अगर बर्तमान ही ऐसा है तो भबिष्य तो बस अंधकार हि होगा......-
चांद से नजदीकियां हो जाएंगी,
अंधेरी रातों में तन्हा रह कर देखो,
खुद से भी प्यार हो जाएगा,,,
गैरों से दूरियां बढ़ाकर तो देखो.....-
इंसान/चीज...!!
समा-ए-आलम कुछ ऐसा था,
की बड़े गुरुर से कहते थे...
चलो ये नाचीज़ ज़िन्दगी...!
किसी के काम तो आयी!!!
पर इस कंवख्त ज़माने ने तो,
हमारे चंद लफ़्ज़ों को,
पत्थर की लकीर ही बनाली....
की हम कब "इंसान" से 'चीज' बन बैठे,
होस ही न रहा.....!!!-
ज़िन्दगी गुजर रही है, सबका हाल पूछते हुए....
पर इन कानों को अरसों हो गए ये सुने-
"अब चलो बताओ इन झूटी सी मुस्कान के पीछे छीपे दर्द की सच्चाई".....🙂-
"विश्वगुरु-भारत"
दो जहां में सबसे प्यारा,
ये "भारत" देश हमारा...
हिमालय मुकूट से सजे जिसके,
माँ-गंगा ने है चरण धोए..
ऋषि-मुनियों के है ये आर्यभूमि,
वेद-पुराणों से पावन ये धरती....
वीरों के रक्त से रंगी ये भूमि
वीरांगनाओं के त्याग से मंजी ये मिट्टी...
"सनातन धर्म" है आधार जिसका,
ऐसा है ये पावन देश हमारा....
प्रकृति भी माँ' सी पूजी जाती है यहाँ,
सत्य, शांति,न्याय,दया,क्ष्यमा के संस्कार यहाँ..
"विस्वगुरु" की उपाधि से विभूषित ये देश,
आदर्शों की मिसाल ढोता ये सदैव....
अनेक फूलों की है ये एक माला,
"विभिन्नता में भी एकता" ये देश है निराला...
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!!मोहब्बत!!
मोहब्बत कभी दौलत,शोहरत या तोफों,
का मोहताज नहीं होता.....
ये तो बस थोड़ी सी वफ़ा और चंद वक़्त
का भूखा है.....
मोहब्बत,
भले ही ख़ुशी न दे पाए,
पर अपने मेहबूब की आसुँ की हर बूंद की कीमत बखूबी जानता है,,
फिर चाहे मुक्कदर से भी क्यों न लड़ना पड़े.....
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दोस्ती हो तो 'सुदामा' की तरह,
प्रेम हो तो 'श्रीराधा' की तरह,
भक्ति हो तो 'मीराबाई'की तरह,
पुकार हो तो 'रानी-द्रोपदी' की तरह,
विश्वास हो तो 'पार्थ' की तरह,
वात्सल्य हो तो 'माँ-यशोदा' की तरह,
अपेक्षा हो तो 'माँ-अहल्या' की तरह,
स्नेह हो तो 'बैर-सबरी' की तरह,
फिर मनुष्य तो क्या स्वयं ईश्वर को भी सारे ऐश्वर्य को त्याग, हमारे पास आना ही होगा.....
"'जय श्री राधेकृष्णा'"🖤
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ତୁମେ ଗଲା ପରେ!!!
ତୁମେ ସିନା ଯାଇଛ ଚାଲି,
ପ୍ରେମ ଚିତାରେ ମୁଖାଗ୍ନି ଦେଇ...
ମୁଁ କିନ୍ତୁ ଆଜି ଭି ଜଳୁଛି,
ସେ ଅଧାଜଳା କାଠ ଭଳି....
ତୃଷାର୍ତ ଚାତକୀ ପରି ରହିଛି ଚାହିଁ,
ତୁମ ଅଶ୍ରୁରୂପୀ ନୀର ଗ୍ରହଣ ପାଇଁ....
ବିରହ ଅଗ୍ନିରେ ନିତ୍ୟ ଜଳୁଛି ମୁଁ,
ତୁମ ପ୍ରେମରୂପୀ ମରୀଚିକାରେ ପଡି....
ରହିଛି ପଡି ପ୍ରସ୍ତରରୂପୀ ଅହଲ୍ୟା ଭଳି,
ତୁମ ପାଦସ୍ପର୍ଶରେ ନିସ୍ତରିବି ବୋଲି...
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रात भर चाँद को देखना
महज एक ख्वाइश नहीं,
बल्कि रोज का सुकून है,
न देखूं भी तो कैसे,
चाँद ने भी तो तुम्हरा मुखड़ा चुरा रखा है,-