Tum kalam na ban Sako koi baat nahi..tum kalam toh pakdo..
Tum Swami Vivekanand na ban Sako koi baat nahi...
Tum es bhare samajh me apna Vivek se kaam Lena Sikh jao..
Tum baba saheb ambedkar na ban pao koi baat nahi..
Tum bs school Jana toh suru kar do..
Tum bhagat Singh or raaj guru na ban pao koi baat nahi..
Tum bs apna hak ke liye ladna Sikh jao.....
Tum subhas Chandra Bose naa ban pao koi baat nahi..
Tum bs apne zindagi ke Safar me bs akela chalana Sikh jao ...
Tum Rabindra nath tagore na ban pao koi baat nahi ..
Tum bs tiger ki tarah himmat rakhna Sikh jao ...
Kalm pakde ho toh jaruri nahi ki tum kalam hi bano..
Tumne agar kalam pakda hai toh tum bhut kuchh Sikh sakhte ho..
Kuchh na v ho toh v tumko ye sahi ensan bana deti hai ye kalm.........-
I am not a writer ..but trying... read more
Respect gain power of
own attitude
Own work and behaviour
Not by any age....-
तजूर्बा
वक्त का तजूर्बा इंसानो ,
के शब्दों को बदलता है,..
वक्त लगता है, खूद को संभालने में,...
पहले "हम", फिर "आप ",और
अब "मैं"...में आने में...।
वक्त का तजूर्बा इंसानो ,
के शब्दों को बदलता है,..।-
इश्क में ये क्या खता हो गई,..
जिससे गूस्सा हूई हूं, दिल उससे ही
मिलने की ज़िद करने लगा है।..-
मैंने वक्त के बदलते रूप को देखा है,
मैंने वक्त के प्रकार को देखा है,
वक्त से प्रहार भी देखा है, और
वक्त के प्रकोप से बच न पाया है, कोई...
मैंने देखा है, उनके प्रकार को..
मैंने देखा है, उनके प्रकार को..।-
वक्त का दरिया कुछ इस प्रकार थे, उनके लिए,..
कि पहले मूंझे वक्त देते थे,..
और आजकल पहले दूसरों और फिर मूंझे
वक्त देने लगे हैं,....
बात सिर्फ इतनी है, कि पहले वक्त के प्रकार थे,
और अब वक्त से प्रहार करते हैं..।-
रोजगार से बेरोजगारी तक की सफर में,
मूझे कूछ- कूछ समझ में आने लगी थी,
दूनिया से ज्यादा, आपको घर वालों
को या रिश्तेदारों की पहचानने
का एक मौका मिलता है,
घर का आचरण और व्यवहार
भी आपको समझ में आने लगती है,
दोस्तों की दोस्ती भी आपको समझ आने लगती है,
पढ़ाई का एहसास और औदों की ताकत का अंदाजा
आपको समझ आने लगती है,
बूजर्ग होने पर वो क्यों चिल्लाने लगते हैं,
ये, भी आपको समझ में आने लगती है,
पैसें ही सब कूछ होते हैं, ये, भी आपको समझ में आने लगती है,
घर की हालत और अपनी नीजीं जिंदगी में कूछ तो कमी है,
अब आपको समझ आने लगती है,
किसी का हाथ पकड़कर चलना आपको अच्छी लगने लगती है,
कुछ उम्मीद और सपने सजने लगते हैं, लेकिन
पैसें बिना कूछ नहीं हो सकता ,ये
अब आपको समझ आने लगती है,
आपको अपनी पूरानी यादें या पूरानी जिंदगी में
फिर से जाने की इच्छा होने लगती है,
तब आपको समझ आने लगती है,
वो दूबारा नहीं मिल सकती है, दू:ख , यातनाएं, दर्द और पिडां ,बस ये अपने लगते हैं,
मूस्कूराहट हो सकती है, हमारी लेकिन हंसी नहीं
ये मूंझे समझ आने लगी थी, और
अब पैसे से सब हो सकता है, ये मूंझे समझ आने लगी है,
सब कूछ समझ में आने लगी है,(२)..।-
बात ऐसी नहीं थी की,
हमारी उनसे मूलाकात नही हूई,
बात ऐसी थी, कि...
उन्होंने मूझसे मिलने की कोशिश नहीं की..।-