बेनाम लेखिका   (Benaam Lekhika)
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Joined 8 May 2021


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!!!

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हूं होश में मगर
हाल बेहोशी से हैं।
एक जमाना बिता दिया
उसके बगैर,
फिर ना जाने आज
ये एक शाम बिताने में
इतनी कश्मश क्यों हैं !!

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उसके होने ना होने से,
कहां कोई फर्क पड़ता हैं !!
बस ये
दिल रोता हैं
चीखता हैं
टूटता हैं
बिखरता हैं !!
और यूं ही
एक और दिन
उसके बगैर,
उसकी यादों के साथ
गुजर जाता हैं।

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|| Captioned ||

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तुम्हारा जाना,
मेरे लिए होगा जैसे की
सूरज का धल जाना एक शाम !
और मैं इस आस में की,
कल‌ एक नया सवेरा होगा ।
इस बात से अपरिचित की
अब सवेरे नहीं
सिर्फ रातें मेरे नाम हैं।

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जादू हो मुझ पर कुछ यूं उसका, जो मैं रम जाऊं उसमें ।
लाल रंग लगता फीका ज़रा, मैं रंगू उसके प्रेम रंग में ।

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लो, गुब्बारे छोड़ मैं तुमसे तुम्हें मांगती हूं
अब ये तो सही हैं ना !
माथा चूमो,
सिने से लगाओं,
मैं चिधु जिन बातों से उन्हें ही दोहराओं,
बदले में मेरा
तुम्हारा आवाज़ की मदहोशियों में खोना
तुमको चलेगा ना ?
ठंड ज्यादा हैं,
खुदको ढंग से ढक कर रखना !
कैसी हो ? ठीक हो ? कुछ खाया तुमने ?
इसके बदले मेरा
तुम्हारे गालों को चूमना, चलेगा ना ?
बाकियों ने तीन शब्द कहें,
चलो मैं तुमसे आंठ कहती हूं,
तुम रूठते रहों
मैं तुम्हें मना लूंगी !
सर्दियां तो ठीक हैं
मुझे तो तुम्हारे पास आने के बहाने चाहिए !
तुम बांटो खुशियां दूसरों से,
मुझे तुमसे तुम्हारी बेचैनियां चाहिए !

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उल्फत उससे
कुछ इसलिए भी हैं,
वो लड़का मिलते वक्त
होठों के बदले
मेरा माथा चूमता हैं ।।

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मिज़ाज कड़क थोड़ा,
रंग सांवला सा हैं

उसकी लबों की मिठास जैसे
चाय का घूंट आखिरी सा हैं

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उसकी शख्सियत भी,
कुछ चाय सी हैं !
जितना चाहों छोड़ने की,
तलब उतनी ही बढ़ती जाती हैं

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