उपहार
अनुशीर्षक में पढ़ें ...-
लेकिन भावनाएं बहुत खास हैं।
दिल से लिखा दिल से पढ़ा जाए,
आप सभी स... read more
नादान बच्ची ने जब समाचार देख कर माँ से पूछा,
"माँ ये रेप किस बला का नाम है?"
घबराकर मुँह पकड़ लिया गया उसका,
"बेटी यह पूछना अपशगुन का काम है !"
अरे, कोई समझाओ उस भोली माँ को,
कश्ती में बैठने से पहले तैरना आना चाहिए ।
कोई धोका होने से पहले उस नादां को...
आवश्यक ज्ञान का कवच पहनाना चाहिए ।
आखिर कब तक बचाएगा तुम्हारा आँचल ?
कब तक काम आएगा कान के नीचे लगा काजल ?
आज छुपाने से हो सुरक्षित कल नहीं जाता,
आँखे बंद कर लेने से ख़तरा टल नहीं जाता ।-
रात की खामोशि में एक विचित्र स्वर आता है।
जिस समय फूलों पर भी न कोई भ्रमर आता है।
आरिज़ पर हवा जुल्फ सी महसूस होती है तेरी,
तेरे इश्क़ से क्यूँ यह हृदय न उभर पाता है।
नाम भी सुनूँ जो तेरा, तो जैसे कोई ज्वर आता है।
जिधर भी देखूं, बस तेरा चेहरा नज़र आता है।
एक भी मुलाक़ात जी भर न देखा था तुझे,
तेरे इश्क़ से क्यूँ यह हृदय न उभर पाता है।
आसमां में चढ़ा चाँद भी उतर जाता है।
इतने इंतज़ार से तो हर चाव मर जाता है।
नजाने कितने साल हुए तुझे मुझसे दूर हुए,
तेरे इश्क़ से क्यूँ यह हृदय न उभर पाता है।-
किसी के पढ़ने से पहले ही मिट गया जो,
दिल पर लिखा था कुछ,
लाख कोशिशें मिटा न पायीं जो।-
पतंगों का शौक शायद उसे भी खूब था,
और इसे पूरा करने में मैं भी मशगूल था।
भीगती जो कभी वो पतंग उसकी,
सदैव खड़ा था मैं धूप सा ।
उड़ने लगा था फिर एक दिन मैं भी,
जैसे मैं ही पतंग आकाश को था चूमता ।
पतंगों का शौक शायद उसे भी खूब था,
और इसे पूरा करने में मैं भी मशगूल था।
मुझ पतंग के पेच भी खूब लड़वाये फ़िर,
उसका हर वैरी मुझे ही था ढूंढता।
फिर पतंग बदलने की सोची उसने,
डोर उसके हाथ, मैं तो मूक था।
शिखर पर लेजाकर डोर ऐसी काटी,
कि दलदलों में फिर रहा हूँ मैं डूबता।
पतंगों का शौक शायद उसे भी खूब था,
और इसे पूरा करने में मैं भी मशगूल था।-
अकेली हो जब तो बहुत डरती है,
याद तो वो भी मुझे बहुत करती है ।
(अनुशीर्षक में पढ़ें...)-
Friendzone is a place where,
Love is a Mirage, and
"I love you" is a bait...-
उन्हें तो बस रोने को कंधा चाहिए होता था,
और हम नासमझ इसे मोहब्बत समझ बैठे ।-
हमदर्द हमें कहकर,
हमसफर बदलते रहे वो।
हमराज़ हमें बनाया,
और जमा पर्ची भरते रहे वो।-