Beenu Khanderiya   (Beenu khanderiya)
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Love poetry
Joined 4 July 2020


Love poetry
Joined 4 July 2020
27 APR AT 22:20

तू चलते चल, चलते चल और चलते चल
बढ़ाते हुए अपने क़दमों को, तू बस आगे चलता चल
ना देख तू इधर, ना भटक तू उधर
बस नज़र को तू अपनी, अपनी मंज़िल पर बनाए रख
तू रुक एक बार और ठहर कर फ़िर सोच एक पल
की तू चल रहा है जिधर क्या वही है तेरा असली सफ़र
ग़र निकले ज़वाब मन से "हाँ"
तो बिना रुके अब तू बस अपने लक्ष्य की ओर चलता चल
तू चलते चल, चलते चल और बस चलते चल....! ❤️

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1 APR AT 10:17

आज अचानक, ना जाने क्यूँ,
पर याद आ रही है बीती पुरानी वो बातें
जहाँ मैं गिरी थी, उठी थी और फ़िर सम्भली थी
जीवन की कुछेक परिस्थितियों से
जहाँ रोक रहे थे सब मुझे, होके खिलाफ़ मेरी उम्मीदों के
मग़र वहीं मन मे बसी उसके लिए मेरी मोहब्बत ने
भरोसा रखा कि ये आस, हक़ीक़त होगी कभी ना कभी
चाहे कितना ही वक़्त क्यूँ ना लगे....

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1 APR AT 9:55

सब ग़ौर करते रह गए बस
अल्फाज़ों के सलीक़े और मेरे लहज़े पर
बस एक तुम्हीं हो जिसने मेरे अल्फाज़ों में छुपे
उन ज़ज्बातों को समझा है...!❤️🫂

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1 APR AT 0:58

देखा था तुझे जब पहली दफ़ा, तो मुझे तुझसे कोई इश्क़-विश्क़ नहीं हुआ था
नापसन्द ही था तू मुझे उस वक़्त, ऐसा भी मुझे कुछ वहम हुआ था
देखकर तेरी नादानीयाँ, मेरा तो मन भी अब तेरी ओर चलने लगा था
यूँ तो महसूस ना करती मैं कुछ, पर तू तो मेरे क़रीब ही आने लगा था
और बताओ एक कोशिश भी नहीं की मैंने रोकने की खुदको
क्यूंकि देखकर तेरी बचकानी हरकतें, मेरा भी ईमान अब कुछ गड़बड़ा ने लगा था
सुन, देखा था तुझे जब पहली दफ़ा, तो मुझे तुझसे शायद इश्क़ ही हुआ था...

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1 APR AT 0:34

आज दिल कर रहा है रोने का, लगकर तेरे गले
बहोत दिन हो गए, ये मन कुछ
भारी-भारी सा लग रहा है....

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1 APR AT 0:16

मैंने रखा है संजो कर तुझसे जुड़ी हरेक चीज़,
हरेक बात, हरेक पल, हरेक ज़ज्बात को,
अब वो चाहे सुकून भरे हो या चाहे
ज़ख्म करने वाले, मुझे इससे फ़र्क नहीं...!

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20 FEB AT 20:28

हमारे लिए यूँ तो सर्द की इस बारिश का
एक अपना अलग ही मज़ा है
पर देखो ज़रा उस बेघर की नज़र से
जिसकी इकलौती छत ही ये खुला आसमाँ है....

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10 FEB AT 5:46

आख़िर तूने चुना है मुझे,
तो मुझे ज़रा इसकी वज़ह भी बता दे
मैं हुई हूँ अब तुझको ज़रुरी,
तो ज़रा मुझे मेरी ज़गह भी बता दे
ये सच ही है या है मेरा सपना
तू एक दफ़ा मेरी ख़ातिर,
ज़ुबां से अपनी ये सबकुछ दोहरा दे
सुन ना... आख़िर तूने चुना है मुझे,
तो मुझे ज़रा इसकी वज़ह भी बता दे

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10 FEB AT 5:07

मैं वो शख़्स हूँ,
जिसने जीया है सफ़र बचपने से बुढ़ापे तक का
मैं वो ग़रीब हूँ,
जिसने काटा है अपना जीवन मजबूरियों का
मैं वो बेघर हूँ,
जिसने बनाया है आशियाना किसी और का
मैं वो मज़दूर हूँ,
जिसे पता है मूल्य एक वक़्त की रोटी का
और अब मैं वो चट्टान हूँ,
जिसे है अनुभव ज़िंदगी के हरेक मुश्क़िल पडाव का!

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10 FEB AT 4:06

जिस रात में हम चैन से सोते है,
कहीं कोई पूरी पूरी रात भी जागता होगा
घर का कोई नौजवान कभी दिन में
तो कभी रात में भी नौकरी करता होगा
शायद ये मर्ज़ी नहीं, मज़बूरी हो उसकी कोई
हो सकता है वो अपने लिए नहीं,
अपने परिवार की ख़ातिर ये सब करता होगा
हाँ जिस रात में हम सब चैन से सोते है,
कहीं ना कहीं कोई पूरी पूरी रात भी जागता होगा.....

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