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था एक वक़्त ऐसा भी जब देख भरे हाथों को हम अपने,
दोस्तों और उनकी दोस्ती का बखान किया करते था
था एक वक़्त ऐसा भी जब #frnd और #bestfrnd के लिए
अलग अलग bands लाया करते थे
था एक वक़्त ऐसा भी जब फ्रेंडशिप डे को status पर नहीं
बल्कि पूरे बचपने और उल्लास के साथ मनाया करते थे
था एक वक़्त ऐसा भी जब बिना काम और मतलब के भी
दोस्त बनाया करते थे
था एक वक़्त ऐसा भी जब हम पूरा पूरा दिन
दोस्तों के साथ बिताया करते थे
था एक वक़्त ऐसा भी जब सब दोस्ती समझदारी से नहीं
बल्कि नासमझी से निभाया करते थे
था एक वक़्त ऐसा भी जब मिलने के लिए plans नहीं
बल्कि दरवाज़े एक दूसरे के खटखटाया करते थे
हाँ था एक वक़्त ऐसा भी जब देख भरे हाथों को हम अपने,
दोस्तों और उनकी दोस्ती का बखान किया करते था...!-
मैं ज़रुरी तो हूँ ज़िंदगी में उसकी,
पर शायद इतनी ज़रुरी नहीं
बेशक मैं याद हूँ अभी उसे,
पर शायद हमेशा के लिए नहीं
हाँ मैं पसंद तो हूँ उसकी, पर लगता है
जैसे मेरी नापसंद की उसे ख़बर नहीं
डरती हूँ इस ख़्याल से कि कहीं
मैं उसके लिए केवल एक विकल्प तो नहीं
हाँ मैं सोचती तो हूँ ये सब उदासी में अपनी
पर यकीं भी है कि ये सब सिर्फ़ मेरी सोच है,
कोई हक़ीक़त नहीं...-
तू चलते चल, चलते चल और चलते चल
बढ़ाते हुए अपने क़दमों को, तू बस आगे चलता चल
ना देख तू इधर, ना भटक तू उधर
बस नज़र को तू अपनी, अपनी मंज़िल पर बनाए रख
तू रुक एक बार और ठहर कर फ़िर सोच एक पल
की तू चल रहा है जिधर क्या वही है तेरा असली सफ़र
ग़र निकले ज़वाब मन से "हाँ"
तो बिना रुके अब तू बस अपने लक्ष्य की ओर चलता चल
तू चलते चल, चलते चल और बस चलते चल....! ❤️-
आज अचानक, ना जाने क्यूँ,
पर याद आ रही है बीती पुरानी वो बातें
जहाँ मैं गिरी थी, उठी थी और फ़िर सम्भली थी
जीवन की कुछेक परिस्थितियों से
जहाँ रोक रहे थे सब मुझे, होके खिलाफ़ मेरी उम्मीदों के
मग़र वहीं मन मे बसी उसके लिए मेरी मोहब्बत ने
भरोसा रखा कि ये आस, हक़ीक़त होगी कभी ना कभी
चाहे कितना ही वक़्त क्यूँ ना लगे....-
सब ग़ौर करते रह गए बस
अल्फाज़ों के सलीक़े और मेरे लहज़े पर
बस एक तुम्हीं हो जिसने मेरे अल्फाज़ों में छुपे
उन ज़ज्बातों को समझा है...!❤️🫂-
देखा था तुझे जब पहली दफ़ा, तो मुझे तुझसे कोई इश्क़-विश्क़ नहीं हुआ था
नापसन्द ही था तू मुझे उस वक़्त, ऐसा भी मुझे कुछ वहम हुआ था
देखकर तेरी नादानीयाँ, मेरा तो मन भी अब तेरी ओर चलने लगा था
यूँ तो महसूस ना करती मैं कुछ, पर तू तो मेरे क़रीब ही आने लगा था
और बताओ एक कोशिश भी नहीं की मैंने रोकने की खुदको
क्यूंकि देखकर तेरी बचकानी हरकतें, मेरा भी ईमान अब कुछ गड़बड़ा ने लगा था
सुन, देखा था तुझे जब पहली दफ़ा, तो मुझे तुझसे शायद इश्क़ ही हुआ था...
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आज दिल कर रहा है रोने का, लगकर तेरे गले
बहोत दिन हो गए, ये मन कुछ
भारी-भारी सा लग रहा है....-
मैंने रखा है संजो कर तुझसे जुड़ी हरेक चीज़,
हरेक बात, हरेक पल, हरेक ज़ज्बात को,
अब वो चाहे सुकून भरे हो या चाहे
ज़ख्म करने वाले, मुझे इससे फ़र्क नहीं...!-